1478 में हुई थी मन्दिर की स्थापना
शहर से लगभग दो किमी दूर स्थित मां शीतला देवी का मंदिर सिद्धपीठ माना जाता है। मैनपुरी राज्य का वंश वृक्ष वर्ष 1173 में महाराजा देवब्रह्म से प्रारंभ हुआ। इसी क्रम में 11वें महाराज जगतमन देवजू मैनपुरी के सिंहासन पर वर्ष 1478 में बैठे थे। वह कड़ादेवी स्थित शक्तिपीठ के उपासक थे। मंदिर के पुजारी मुदित दीक्षित बताते हैं कि एक बार महाराज चैत्र मास नवरात्र में जब कड़ा मानिकपुर मां के दर्शन को गए तो मां ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया कि तेरी सेवा और भक्ति से वह प्रसन्न हैं। इसलिए उनकी स्थापना वह मैनपुरी राज्य में कराएं। मैनपुरी आकर महाराज ने मां की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए संकल्प लिया।
उन्होंने मैनपुरी-कुरावली रोड पर मां आद्या शक्ति की मूर्ति को विराजमान कराने के लिए भव्य मंदिर का निर्माण कराया। इसमें कड़ा स्थित आद्या शक्ति की ऐसी कलात्मक प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित कराई, जो तत्कालीन मूर्तिकला, शिल्पकला, वास्तुकला और पुरातात्विक दृष्टिकोण से मूल्यवान कृति रही है। इस मन्दिर के बारे में बुजुर्गों का कहना है कि 16वीं शताब्दी में जनपद एवं आसपास के स्थलों में बड़ी चेचक और खसरे का गंभीर प्रकोप हुआ तो मां आदिशक्ति की ख्याति के कारण जनसमुदाय ने देवी मां का जप और आराधना की। यह रोग उनकी भस्म और असीम कृपा से दूर हो गया। चूंकि इस रोग में गर्मी की अधिकता रहती है, उससे शीतलता प्रदान करने वाली शक्ति का नाम शीतला देवी के रूप में ख्याति प्राप्त हो गया। यहां नेजा चढ़ाने की भी पुरानी परंपरा है।
शीतला देवी मंदिर ऐसे पहुंचे
– घंटाघर चौराहे से देवी रोड पर दो किमी दूर
– ईशन नदी पुल से कुरावली रोड पर दो किमी दूर
– सिंधिया तिराहे से ज्योंती बाईपास रोड होते हुए तीन किमी
– करहल चौराहे से ईसन नदी पुल होते हुए पांच किमी