एक्टर बनना था तो स्कूली दिनों में ही अपने स्तर पर अंग्रेजी सुधारी, मार्शल आर्ट सीखी, डांस सीखा। स्कूली पढ़ाई के बाद कॉलेज के दौर में जब गुडग़ांव और दिल्ली के बीच न तो एयरकंडीशन बसें और न ही मेट्रो चलती थी, मैं हरियाणा परिवहन की भीड़भरी बस से हर रोज सुबह 7.30 बजे घर छोडक़र, दिल्ली के लिए दौड़ लगाता। पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ कैम्पस के कॉलेज में पढ़ता और यहां से सीधा श्री राम सेंटर रिपर्टरी कंपनी में थिएटर के लिए पहुंच जाता, घर लौटते रात के 11 बजते थे। 2006 में पुणे के एफटीआईटी में एक्टिंग कोर्स में दाखिला ले लिया, लालच यही था कि यहां से मुंबई पहुंच जाऊंगा। 2008 में मुंबई आया, कई जगह रिजेक्ट होने के बाद 2010 में पहली फिल्म मिली। चार साल बाद फिल्म शाहिद के लिए नेशनल अवॉर्ड मिल गया।
एक साधे सब सधे मुंबई आने के बाद मैंने दो साल स्ट्रगल किया, बहुत बार खारिज किया गया लेकिन मैं इसके लिए तैयार था। मेरा कोई प्लान बी नहीं था। एक्टिंग ही एकमात्र चीज थी जिसे मैं जानता था, जिसे मैं जी रहा था और मैं बस इसे करना चाहता था। जब फिल्में नहीं मिल रही होती थीं, तब भी मैं अंधेरी के अपने कमरे में साथी किराएदार अभिनेता दोस्तों के साथ दृश्य रच रहा होता था और उनमें सुधार कर रहा होता था। इससे मुझे खुशी मिलती थी, यही करके पैसे भी कमाए जा सकते थे तो आखिर क्यों नहीं।
मुझे नहीं पता कि मैं सफल हूं या नहीं, लेकिन मेरे सोचने की प्रक्रिया नहीं बदली है। मुझे लगता है कि सफलता एक जिम्मेदारी है, क्योंकि इससे चीजों को बदलने की शक्ति मिलती है। इसलिए मुझे लगता है कि सफलता सिर्फ सोचने या उच्चारण करने तक की बात नहीं है, जब तक आप जिम्मेदार नहीं होते, आप सफल भी नहीं हो सकते। यह जिम्मेदारी यह तय करने की शक्ति देती है कि जीवन को किस तरह से ले रहे हैं।