को -वर्किंग स्पेस के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक माह की फ्री मेम्बरशिप से शुरुआत करें। रियल एस्टेट एजेंटों से संपर्क करें। हाइटेक सुविधाओं और सर्विस की जानकारी देने वाले वीडियो एड तैयार करवाएं। जिसका उपयोग आप सोशल मीडिया पर एडवर्टाइजिंग में करें।
भारत में फिलहाल को-लिविंग स्पेस का स्टार्टअप शुरुआती दौर में है। यंग एंटरप्रेन्योर्स के लिए यह आइडिया फू्रटफुल है। को-लिविंग स्पेस के कॉन्सेप्ट को समझने के लिए इस फील्ड में काम कर रही कंपनियों की स्टडी फायदेमंद होगी। को-लिविंग स्पेस के स्टार्टअप में दिलचस्पी रखते हैं तो नेस्टवे, जोलो स्टे, स्टेंजा लिविंग, को-लिव जैसी कंपनियों का वर्किंग मॉडल भी समझें।
बीते दशक में आईटी, सर्विस और मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में आए बूम के बाद देश के हर शहर में माइग्रेंट वर्कर की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे वर्कर के लिए अब तक दूसरे शहरों मे आशियाने की जरुरत को ट्रेडिशनल रेंटेड फ्लैट, पीजी या गेस्ट हाउस पूरा करते आए हैं। स्टार्टअप के दौर में यंग एंटरप्रेन्योर ने ट्रेडिशनल अकमोडेशन के कॉन्सेप्ट में एक इनोवेशन आइडिया का सम्मिलित किया है, जिसे को-लिविंग स्पेस कहा जा रहा है। 2022 तक को-लिविंग स्पेस का मार्केट करीब 2 बिलियन डॉलर का होगा।
वर्किंग प्रोफेशनल्स के अलावा को-वर्किंग स्पेस की कंपनियों के लिए टारगेट कस्टमर्स हैं- कॉलेज स्टूडेंट। वर्तमान में इंडिया में करीब 50 हजार कॉलेज हैं, जिसमें पढऩे वाले स्टूडेंट की संख्या 3 करोड़ से अधिक है। खास बात यह है कि 70 प्रतिशत कॉलेजों में हॉस्टल की सुविधा ही नहीं है। को-लिविंग स्पेस ऐसे कॉलेज स्टूडेंट को अधिक आकर्षित करेगा। इसका फायदा यह है कि कॉलेज स्टूडेंट एक लॉन्ग टर्म कस्टमर होता है। वह वर्किंग प्रोफेशनल्स से अधिक बेनिफिशियल साबित होगा।