बोलता नहीं, फुसफुसाता है
दिल की एक आदत होती है। यह अपनी बात चिल्ला-चिल्ला कर नहीं कहता। यह बहुत आहिस्ता से अपनी बात कहता है। बोलता नहीं, बल्कि फुसफुसाता है। इसे सुनने के लिए अपने आसपास के शोर से कटना होता है। कभी खुली आंखों से ध्यान एकाग्र करके और कभी आंखें बंद करके सुनना होता है। भले ही अपनी बात यह बहुत धीमें कहे, मगर इसकी बात में बहुत वजन होता है। जब इसे मान कर हम कोई फैसला लेते हैं तो पछताना नहीं पड़ता। ऐसी प्रज्ञा होती है दिल की आवाज में, हमारी आत्मा की आवाज में। इसके विपरीत जब हम दिल की आवाज को लगातार नजरअंदाज करते हैं तो चीजें अव्यवस्थित होने लगती हैं। हो सकता है कि हमारे पास पैसा, नाम या दूसरी उपलब्धियां हों, लेकिन सुकून के नाम पर कुछ न हो। दिल की आवाज सुन कर भी हमें बहुत कुछ मिलता है और सुकून भी मिलेगा, यह तय होता है।
हर फैसले पर देता राय
जीवन में कई बार हम ऐसे मोड़ पर पहुंच जाते हैं, जब हमें बहुत सोच-विचार कर आगे बढऩा होता है। किस ओर मुड़ें, कहां-कैसे जाएं, इसका फैसला हमारी जिंदगी बदल सकता है। ऐसे में हम अपने विश्वसनीय लोगों से राय लेते हैं, उनसे विमर्श करते हैं, जैसे कि हमारे खास दोस्त, हमारे गुरु, माता-पिता आदि। इनके अलावा हमारा मार्गदर्शन करने के लिए हमारा दिल भी हमेशा मौजूद होता है। अलग-अलग परिस्थितियों में और कोई हमारे साथ रहे या न रहे, यह जरूर हमारे साथ होता है।
जीवन का कोई भी अहम फैसला लेते समय हमें अपने दिल की सुन लेना चाहिए और इस पर भरोसा करना चाहिए। रोजमर्रा के छोटे-छोटे फैसलों में भी यह हमारी पूरी मदद करता है। जब हम इसकी बात मान लेते हैं तो उलझनें, मुसीबतें और रास्ते में आने वाली बाधाएं कम हो जाती हैं। कभी-कभी बहुत आश्चर्यजनक रूप से यह मार्गदर्शन करता है।
दिमाग का भी हो साथ
हर मामले का विशेषज्ञ है हमारा दिल। इसे सब कुछ पता होता है। जीवन के हर क्षेत्र में यह हमें राह दिखा सकता है। चाहे पढ़ाई और परीक्षाएं हों, चाहे नौकरी और काम से जुड़ी परेशानियां, रिश्तों में उलझन हो, दिल हर चीज को सुलझाता है। कोई नौकरी-काम शुरू करने या किसी रिश्ते में जाने को लेकर कोई दुविधा हो, उसे भी यह दूर कर देता है। बशर्ते आप इसकी बताई राह चुनें और उस पर चलें।
ऐसा नहीं कि केवल दिल की आवाज ही महत्त्वपूर्ण है। दिमाग की बात सुनना भी जरूरी होता है। दरअसल दिल चुनाव में मदद करता है और दिमाग चुने गए रास्ते पर आगे बढऩे में। हां, उस रास्ते जब भी छोटे-छोटे चुनाव की बात आती है, दिल फिर आगे बढ़ कर अपनी बात कहता है। इसीलिए हमेशा दिल और दिमाग दोनों को साथ लेकर चलना चाहिए।
दूसरों से जुड़े हुए तार
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी दोस्त को फोन करने का मन हुआ होगा और अचानक से उसका फोन या मैसेज आ गया हो? कभी किसी के बारे में सोचा भर हो और वह सामने आ गया हो? कभी मन घबरा उठे और थोड़ी देर में पता चले कि कोई अपना किसी परेशानी में है? बिलकुल हुआ होगा। ऐसा इसलिए होता है कि दिलों के तार आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। यह दिल उससे भी ज्यादा शक्तिशाली है, जितना हम सोच सकते हैं। इसलिए कभी इसकी बातों को नजरअंदाज मत करें। यह हमें खुद से ही नहीं, दूसरों से भी जोड़ता है।
जब दिल कुछ कहे तो उसे ध्यान से सुनें और वैसा कर दें। हां, किसी से आकर्षण या अलग भावनाओं की स्थिति में थोड़ा सतर्क रहना पड़ता है। ऐसे में कई बार कोई बहुत तीव्र इच्छा होती है, जिसे हम अपने दिल की आवाज समझ लेते हैं। इसलिए हमें अपनी तीव्र इच्छा और दिल की आवाज में अच्छे से फर्क करके ही कोई फैसला लेना चाहिए।
कैसे सुना जाए इसे?
कुछ लोग अपने दिल की आवाज बहुत ज्यादा सुनते हैं और कुछ लोग बहुत कम। दूसरी तरह के लोग भी जब इसकी अहमियत जान जाते हैं तो इसे ज्यादा-से-ज्यादा सुनना चाहते हैं। मगर आसपास का वही कोलाहल और व्यस्त दिनचर्या बार-बार इसे दबाती है। इसे अच्छे-से सुनने का सबसे आसान तरीका है कि इसे सुनने की कोशिश की जाए। जब भी कहीं फंसें या कुछ समझ न आए, आंखें बंद कर अपने दिल के अंदर झांका जाए। साफ-साफ कोई सवाल पूछा जाए, जवाब जरूर मिलेगा।
रोजाना ध्यान करने से यह आवाज और भी मजबूत होती है। ध्यान व्यर्थ की बातों से मन हटाता है और केवल जरूरी चीजों पर उसे केंद्रित करता है। नियमित ध्यान की आदत डालें। जितना ज्यादा अपने दिल की आवाज सुनेंगे, यह उतना ज्यादा मुखर होगी।