कहा जाता है कि दुनिया में दो तरह के लोग हैं, एक जो चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए, दूसरे वे जिन्होंने सब कुछ अपने बूते पाया। मैं कहूंगा कि एक तीसरी जमात भी है, जिसके मुंह में चांदी का चम्मच तो है लेकिन अपना खाना खुद उसे खुद जुटाना है। मुझ जैसे कई सेलेब्रिटी किड इसी श्रेणी में आते हैं, जिनके मुंह में चांदी का चम्मच तो दिखता है लेकिन पेट भी भरा हुआ रहेगा, यह कह पाना मुश्किल है। मेरे डैड एक जाने-माने एक्शन डायरेक्टर हैं, लेकिन बतौर एक्टर मुझे अपनी पहचान बनाने के लिए अभी और संघर्ष करना है।
ऐसे होती है बहुत आसानी मैं उन लोगों में से हूं जो प्लानिंग में ज्यादा वक्त नहीं बिताते, बल्कि काम को कर डालते हैं। मैं इंजीनियङ्क्षरग का स्टूडेंट रहा हूं लेकिन सेकंड ईयर तक आते-आते पता चल गया कि इंजीनियङ्क्षरग मेरे लिए बड़ी मुश्किल है, इसलिए मैंने एक्टिंग को चुना क्योंकि मुझे यह आसान लगी। आसानी का मेरा पैमाना पूछेंगे तो इसका मतलब वह काम है जो आपके दिल के करीब हो।
‘मसान’ फिल्म से मेरी एक्टिंग को सराहना मिलने का दौर शुरू हुआ, ‘संजू’ में रणबीर कपूर के दोस्त कमलेश के किरदार ने मुझे घर-घर पहचाना जाने वाला नाम बना दिया। इन सबसे पहले अनुराग कश्यप का सहायक निर्देशक भी रहा और पांच से ज्यादा वर्षों तक लगभग हर रोज स्क्रीन टेस्ट दिए। यहां तक कि भोजपुरी फिल्मों के लिए भी मैंने स्क्रीन टेस्ट देते हुए खुद को आजमाया है।
खूबियों को उभार लीजिए मेरे जैसे कुछ लोगों की शक्ल-सूरत बहुत साधारण है। चाल-ढाल, पहनावे में बदलाव करके भी हम निगाहों में नहीं चढ़ पाते हैं। मेरा उन सबसे आग्रह है कि यह सब करना बंद कीजिए। लोग मुड़-मुडक़र देखें, इसके लिए चिंतित होने की बजाय अंतस में मुडक़र देखिए। खामियों को ढकने की बजाय खूबियों को उभार लीजिए।