मनोज ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई बिहार के बेतिया जिले के स्कूल में ही पूरी की। उसके बाद 17 साल की उम्र में वह दिल्ली आ गए और यहां रामजस कॉलेज में पढऩे लगे। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) के बारे में सुन रखा था, इसलिए उन्होंने एनएसडी में एडमिशन के लिए कई बार प्रयास किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उन्हें एनएसडी में एडमिशन नहीं मिलने का दुख था लेकिन इस दौरान उन्होंने दिल्ली में थिएटर करना जारी रखा।
1994 में आई गोविंद निहलानी की फिल्म ‘द्रोहकाल’ में एक मिनट का छोटा सा रोल और शेखर कपूर निर्देशित ‘बैंडिट क्वीन’ में डाकू का किरदार निभाने का मौका मिला। 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुए महेश भट्ट निर्देशित सीरियल ‘स्वाभिमान’ में भी उन्होंने काम किया। 1998 में आई रामगोपाल वर्मा निर्देशित गैंगस्टर फिल्म ‘सत्या’ में निभाया भीखू महात्रे का किरदार उनके कॅरियर का टर्निंग पॉइंट रहा।
चंद्रप्रकाश द्विवेदी निर्देशित फिल्म ‘पिंजर’(2003) के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का स्पेशल जूरी अवॉर्ड से नवाजा गया। मनोज ने कॅरियर में ‘एलओसी कारगिल’, ‘राजनीति’, ‘आरक्षण’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘चक्रव्यूह’, ‘स्पेशल 26’, ‘सत्याग्रह’, ‘अलीगढ़’, ‘ट्रैफिक’, ‘गली गुलियां’, ‘लव सोनिया’ समेत बहुत सी फिल्मों में काबिलेतारीफ परफॉर्मेंस से दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्होंने कॅरियर में अनकन्वेंशनल रोल निभाए हैं। आज वह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के उम्दा अभिनेताओं में शुमार हैं।