स्टोर लॉयल्टी प्रोग्राम
कुछ स्टोर्स ग्राहकों को लॉयल्टी प्रोग्राम्स ऑफर करते हैं और वन टाइम ज्वॉइनिंग फीस चार्ज करते हैं। ग्राहक सोचता है कि खरीद पर मिले डिस्काउंट से ज्वॉइनिंग फीस की भरपाई हो जाएगी। लेकिन यह अच्छा आइडिया नहीं है, क्योंकि ज्यादातर लोग स्टोर से नियमित रूप से खरीदारी नहीं करते। इस तरह के प्रोग्राम्स के कारण आप छोटे डिस्काउंट या कैशबैक के चक्कर में स्टोर से शॉपिंग करने लगते हैं।
सेल में खरीद
भारत जैसे देश में लोग कोई भी सामान खरीदते समय कीमत पर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। यहां पर सेल शब्द सबको आकर्षित करता है। गारमेंट शॉप या शूज आउटलेट पर आपको 50 से 60 फीसदी की छूट मिल जाती है, तो आप खुश हो जाते हैं। पर यहां से सामान खरीदने पर प्रोडक्ट में डिफेक्ट होने पर बाद में रिटर्न नहीं होता। कई बार सेल या डिस्काउंट के चक्कर में आप वह सामान भी खरीद लेते हैं, जिसकी आपको जरूरत नहीं होती।
कार की एक्सटेंडेड वारंटी
आमतौर पर सभी कारों में दो साल की वारंटी होती है। इससे खरीदार को व्हीकल में मैन्युफैक्चङ्क्षरग डिफेक्ट से सुरक्षा मिल जाती है। यह वारंटी कुछ राशि चुकाने पर एक साल के लिए बढ़ सकती है। यह बढ़ी हुई वारंटी शायद ही आपके कभी काम आए। अगर एक या दो साल में मैन्युफैक्चङ्क्षरग डिफेक्ट नजर नहीं आता है तो यह बाद में परेशान नहीं करता। व्हीकल को दो या तीन तक इस्तेमाल करने के बाद मैन्युफैक्चङ्क्षरग डिफेक्ट साबित करना भी मुश्किल हो जाता है।
रिवार्ड प्वॉइंट्स
क्रेडिट कार्ड कंपनियों को सबसे ज्यादा खुशी तब होती है, जब आप पैसे खर्च करते हैं क्योंकि इससे उन्हें ज्यादा बिल भेजने का मौका मिलता है। अगर आप इस बिल को पूरा नहीं भर पाते तो प्रति माह से 2 से 3 फीसदी का चार्ज लिया जाता है। कंपनियां आपको कार्ड से ज्यादा खर्च करने पर रिवार्ड प्वॉइंट्स का लालच भी देती हैं। इन प्वॉइंट्स को प्राप्त करने के लिए खरीदारी करना गलत है। खर्चे जरूरतों के हिसाब से होने चाहिए, न कि रिवार्ड प्वॉइंट्स के आधार पर।
ब्याज के लिए सेविंग अकाउंट्स
ज्यादातर बैंक सेविंग्स बैंक अकाउंट में आपके बैलेंस पर 4 फीसदी ऑफर करते हैं। यह आकर्षक लगता है, पर फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में कम है। ज्यादा रेट के लिए आपको ज्यादा बैलेंस मैंटेन रखना पड़ता है। ऐसे में ज्यादा राशि से कम रिटर्न मिलता है। अगर बैंक बैलेंस पर ज्यादा रिटर्न चाहते हैं तो बैंक की फ्लेक्सी अकाउंट या स्विप इन अकाउंट सुविधा का फायदा लें। अगर बैलेंस निश्चित राशि से ज्यादा होगा तो यह अपने आप फिक्स्ड डिपॉजिट में बदल जाएगा।
बल्क में खरीदारी
महंगाई से लडऩे का उपाय है कि आप बल्क में सामान खरीदें। इकट्ठा सामान लेने पर आपको सामान की कीमत सही मिल जाती है। पर हर चीज के लिए यह आइडिया कारगर साबित नहीं होता। आलू और प्याज आप इकट्ठा खरीद सकते हैं, क्योंकि इन्हें कुछ दिनों तक स्टोर कर सकते हैं। टमाटर, गाजर, खीरा, मूली आदि चार या पांच दिन मुश्किल से चल पाते हैं। इसलिए इकट्ठा खरीदने पर ये सड़ सकते हैं। पालक, धनिया तो एक या दो दिन में ही बेकार हो जाते हैं।
शिपिंग चार्ज
ऑनलाइन रिटेलर प्रोडक्ट्स पर शानदार डिस्काउंट्स देते हैं, पर ये शिपिंग चार्ज भी लेते हैं। एक निश्चित राशि से ज्यादा का ऑर्डर करने पर शिपिंग चार्ज नहीं लिया जाता है। शिपिंग चार्ज 50 से 100 रुपए तक होता है। ज्यादातर ग्राहक शिपिंग चार्ज से मुक्ति पाने के लिए अपने ऑर्डर में कई छोटे सामान जोड़ते जाते हैं। अगर ये गैरजरूरी सामान हैं तो शिपिंग चार्ज बचाने के चक्कर में इनमें फिजूलखर्ची ज्यादा हो जाती है। आपको जिस सामान की जरूरत है, वही खरीदें।
सस्ता आइटम
अगर आपको कम कीमत पर कोई सामान मिलता है तो यह अच्छी बात है। पर कई बार कम कीमत के सामान की कोई वैल्यू नहीं होती और पैसे भी बर्बाद जाते हैं। अगर आप 600 रुपए का टाउजर लेते हैं तो यह थोड़े दिन में ही खराब हो जाता है। स्थापित कंपनी से अप्लायंस खरीदने का एक फायदा यह भी है कि आप बाद में स्पेयर पार्ट ले सकते हैं। कई बार छोटी कंपनी कुछ समय बाद बंद भी हो जाती हैं। ऐसे में मूल प्रोडक्ट को सुधरवाया भी नहीं जा सकता।