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मंडला

मनाया गया अरहर प्रक्षेत्र दिवस

वैज्ञानिकों ने किसानों को बताए फसलों से अधिक उपज लेने के तरीके

मंडलाNov 12, 2019 / 05:17 pm

Sawan Singh Thakur

मनाया गया अरहर प्रक्षेत्र दिवस

मनाया गया अरहर प्रक्षेत्र दिवस

मंडला। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञानं केंद्र मंडला के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ विशाल मेश्राम की अध्यक्षता मे केंद्र के वैज्ञानिको डॉ आरपी अहिरवार एवं डॉ प्रणय भारती एवं विजय सिंह सूर्यवंशी द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत अंगीकृत सेटेलाइट गांव डुंगरिया में अरहर प्रक्षेत्र दिवस मनाया गया। जिसमे डुंगरिया, खुक्सर, एवं मूढ़ाडीह के कृषकों एवं महिला कृषकों ने प्रक्षेत्र दिवस कार्यक्रम में भाग लिया तथा प्रगतिशील कृषकों ने अपने अनुभवों को बताते हुए कहा कि पहले हम देशी बीज का उपयोग करते थे जिससे उपज कम प्राप्त होती थी इस वर्ष कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा प्राप्त बीज से अच्छी उपज मिलने की संभावना है यह मात्र बीज बदलने तथा तकनीकी रूप से पंक्तियों में बुवाई करने से अधिक उपज प्राप्ति की संभावना है। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ विशाल मेश्राम एवं केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ आरपी अहिरवार, डॉ प्रणय भारती एवं विजय सिंह सूर्यवंशी ने गांव के किसानों के साथ प्रक्षेत्र का भ्रमण किया एवं भ्रमण के दौरान किसानों को आ रही समस्या से अवगत कराया एवं समाधान प्राप्त किया। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ विशाल मेश्राम ने कहा सर्वप्रथम बोने से पहले हर बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। एक पैकेट 10 किग्रा बीज के ऊपर छिडकक़र हल्के हाथ से मिलाएं जिससे बीज के ऊपर एक हल्की पर्त बन जाए। इस बीज की बुवाई तुरन्त करें। तेज धूप से कल्चर के जीवणु के मरने की आशंका रहती है। ऐसे खेतों में जहां अरहर पहली बार काफी समय बाद बोई जा रही हो, कल्चर का प्रयोग अवश्य करें। मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम व 1 ग्राम कार्वेन्डाजिम प्रति कि ग्राम बीज दर से अथवा 3 ग्राम थीरम प्रति किग्राम बीज दर से शोधित करके बुआई करें। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ आरपी अहिरवार ने बताया की अरहर की फसल के लिए बलुई दोमट वा दोमट भूमि अच्छी होती है। उचित जल निकास तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। खेत में पानी का ठहराव अरहर की फसल को भारी हानि पहुँचाता है। अरहर की दीर्घकालीन प्रजातियॉं मृदा में 200 किग्रा तक वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरिकरण कर मृदा उर्वरकता एवं उत्पादकता में वृद्धि करती है। मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अन्तिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 2 सेमी गहराई व 5 सेमी साइड में देना सर्वोत्तम रहता है। प्रति हैक्टर 15-20 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस, 20 किग्रा पोटाश व 20 किग्रा गंधक की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में जस्ता की कमी हो वहॉं पर 15-20 किग्रा जिन्क सल्फेट प्रयोग करें। नाइट्रोजन एवं फासफोरस की समस्त भूमियों में आवश्यकता होती है। किन्तु पोटाश एवं जिंक का प्रयोग मृदा परीक्षण उपरान्त खेत में कमी होने पर ही करें। नत्रजन एवं फासफोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति के लिए 100 किग्रा डाइ अमोनियम फासफेट एवं गंधक की पूर्ति के लिए 100 किग्रा जिप्सम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है। एक किग्रा बीज को 2 ग्राम थीरम तथा एक ग्राम कार्बोन्डाजिम के मिश्रण अथवा 4 ग्राम ट्रइकोडर्मा से उपचारित करने की सलाह दी गई।

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