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आज भी देश भक्तों की यादें संजोए है यह वट वृक्ष

locationमंडलाPublished: Aug 14, 2019 12:24:35 pm

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

अंग्रेज के शासन काल में दी जाती थी फांसी

Even today, this vat tree has cherished the memories of patriots

आज भी देश भक्तों की यादें संजोए है यह वट वृक्ष

मंडला. इतना असान नहीं था आजादी पाना कई कांतिकारियों को मरते देखा है। शासन बदला, संस्कृति बदली अब लोग भी बदले लेकिन मैं नहीं बदला, आज भी आजाद लोगों को आते जाते देखता हूं। लेकिन अब मेरा अस्तित्व खतरे में है। दो दशकों से मुझे ऐसे जख्म मिले हैं कि अब शायद ही मैं ज्यादा दिनों तक जिंदा रह पाउं। यह किसी इंसान की नहीं, व्यथा है उस पेड़ की है जो तीन सदियों के बाद भी आज खड़ा हुआ है। लेकिन बढ़ते अतिक्रमण और प्रशासनिक लापरवाही से यह वृक्ष अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है।
जिले में एक बरगद का पेड़ है जो अंग्रेजों के जुल्मों और आजादी के परवानों के किस्सों की याद दिलाता है। सैंकड़ों सालों से खड़ा चिलमन चौक के आगे बड़ चौराहा का बरगद का पेड़ सन 1857 की क्रांति से लेकर अंग्रेजों के जुल्मों की यादों को संजोये हुए हैं। १८ सो ५७ की क्रांति के दौरान यहां २३ लोगों को फांसी दी गई थी। जिले के वरिष्ट गिरजा शंकर अग्रवाल ने बताया कि १८५७ की क्रांति के दौरान जिले में रामगढ़ की रानी अवंती बाई का राज्य था। अंग्रेजो से बगावत के बाद चार लोगों को अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार किया था जिसमें से दो लोगों को फांसी दे दी गई व अन्य दो लोगों को इसलिए छोड़ दिया गया ताकि वे दूसरे बगावत करने वालों को बता सकें। इसके दूसरे सप्ताह फिर २१ लोगों को फांसी दे दी गई थी। जानकारों की माने तो इसके पूर्व व बाद में भी अंग्रेज सरकार से बगावत करने वाले देशभक्तों को इस बरगद के पेड़ में फांसी दी जाती थी। पेड़ में फांसी के फंदे के काम आने वाले लोहे के मोटे शिकंजे कसे हुए हैं। जिससे रस्सी बांधी जाती थी।
बड़ चौरहा शहर के हृदय स्थल है। वट वृक्ष रोजना छलनी हो रहा है। वट वृक्ष के तनों पर बोर्ड लगाने के लिए दर्जनों कीलें लगाई गई हैं। वहीं आस पास काबिज अतिक्रमण भी परेशानी का सबब बना हुआ है। वृक्ष से सटकर लगी दुकानें वृक्ष को नुकसान पहुंचा रहीं हैं। जिसकी सुध लेने की फिक्र न तो नगरीय प्रशासन को है और न ही जिला प्रशासन को। पर्यावरण प्रेमी भी वृक्ष को लेकर उदासीन बने हुए हैं। वट वृक्ष प्रदेश का राजकीय वृक्ष है हालांकि लोहे के एंकल को लेकर कुछ लोगों की मान्यता है अलग है। जिनका कहना है कि इस एंगल में मुगल काल में प्रकाश के लिए लालटेन टांगी जाती थी।
पर्यावरण विद राजेश क्षत्री का कहना है कि बरगद का वृक्ष साल में लाखों रुपए की ऑक्सीजन देता है। वहीं यह वृक्ष पंछियों के लिए नींद का भी काम करता है। इस पर लगने वाले फलों को खाकर पंछी अपना जीवन यापन करते हैं। वहीं गर्मियों के मौसम में इस वृक्ष की छांव बड़ी ठंडक प्रदान करती है।
ब्रिटिश हुकूमत की दमनकारी नीति
प्रो डॉ शरद नारायण खरे इतिहासकार व साहित्यकार ने बताया कि मध्य प्रदेश मंडला के अम्बेडकर चौराहे या बड़ चौराहे पर स्थित वट वृक्ष दो सौ वर्ष से अधिक पुराना है। इतिहास के संदर्भों के अनुसार यहां 1842 के बुंदेला विद्रोह, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम व 1930 के जंगल सत्याग्रह के समय अनेक स्वतंत्रता सेनानियों व देशभक्तों को इसलिए सार्वजनिक रूप से फांसी देकर इस पेड़ से लटकाया गया था, जिससे भारतीय देशभक्तों में डर व आतंक की भावना उत्पन्न हो। ऐतिहासिक स्रोत तो यह भी कहते हैं कि सत्याग्रहियों के फांसी पर लटके शरीर कई दिनों तक लटकाकर रखे जाते थे। दरअसल यह ब्रिटिश हुकूमत की दमनकारी नीति का अंग था। आज भी इस वट वृक्ष पर लोहे का एंकल लगा है व सांकलें लटकी हैं। देशभक्त इस बलिदान स्थल को श्रध्दा, सम्मान व आस्था की नजर से देखते हैं एवं प्रणाम निवेदित करते हैं।

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