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मंडला

सरसों के प्रदर्शन के लिए किसानों को दिया प्रशिक्षण

कार्यक्रम के दौरान केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को किया गया बीज वितरण

मंडलाNov 21, 2019 / 06:12 pm

Sawan Singh Thakur

सरसों के प्रदर्शन के लिए किसानों को दिया प्रशिक्षण

सरसों के प्रदर्शन के लिए किसानों को दिया प्रशिक्षण

मंडला। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र मंडला द्वारा जिले में महात्मा गांधी की जयंती के उपलक्ष्य मे दलहन एवं तिलहन फसल विस्तार एवं समूह पंक्ति प्रदर्शन तकनीकी पर प्रशिक्षण एवं बीज वितरण कार्यक्रम आयोजन अंगीकृत सेटेलाईट ग्राम खुक्सर, डुंगरिया, एवं मूढ़ाडीह के अतिरिक्त जिले की बिछिया, निवास एवं नैनपुर तहसील के विभिन्न गांवों में सरसों के समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन के लिए 350 किसानों को आदान समाग्री वितरण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न हुआ। प्रशिक्षण के दौरान कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ विशाल मेश्राम द्वारा सरसों, चना, मसूर, तथा अलसी फसल की उन्नत उत्पादन तकनीकी की जानकारी देते हुए किसानों को बताया कि सरसों की फसल कम सिचाई व लागत मे दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ देती है इसकी खेती में उपयुक्त किस्मों का चयन, संतुलित मा़त्रा में उर्वरकों का एवं पादप कीट रोग की रोकथाम कर किसान भाई अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है, सरसों फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिये जैव उर्वरक एजेक्टोबेक्टर और स्फुर घोलक जीवाणु को 10 ग्राम प्रति किलो बीज में उपचार करने से पौधों में नत्रजन एवं फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ जाती है और उपज में वृद्वि होती है सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक की कमी वाली मृदा जिंक को डालने पर करीब 25-30 प्रतिशत की पैदावार में वृद्वि होती है। साथ ही थायोयूरिया जैव रसायन के प्रयोग से सरसों की उपज में 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है थायोयूरिया पौधों की आंतरिक कार्यिकी में सुधार लाता है यह प्रभाव थायोयूरिया में उपस्थित सल्फर के कारण होता है थायोयूरिया में करीब 42 प्रतिशत गंधक एवं 36 प्रतिशत नत्रजन होता हैै। केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ आरपी अहिरवार एवं डॉ प्रणय भारती ने बताया कि सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में की जा सकती है लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। जिस खेत में श्रीविधि से सरसों की रोपाई करना हो उस खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यदि खेत सूखा है तो सिचाई (पलेवा सिचाई) करके जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना ले तथा खरपतवार को हाथ से ही निकालकर खेत से बाहर कर दें। अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित बीज का प्रयोग करें अगर अपना बीज पुराना है तो नया बीज ले लें। उन्नत किस्में पूसा बोल्ड, वरूणा, क्रांति, (केआरवी), रोहणी (पीआर15), माया वरदान, पूसा अग्रणी (सेज 2), जेएम1, जेएम 2, जेएम 3, जीएम 2, लक्ष्मी पूसा जय किसान, जेडी 6, कृष्णा, वसुंधरा, झुमका, पीटी 303, एम 27, टीएम 46। बीज की मात्रा फसल की अवधि पर निर्भर करती है। यदि अधिक दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा कम लगेगी तथा यदि कम दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा अधिक लगेगी। सरसों की फसल में उर्वरक प्रबंधन मिट़टी परीक्षण के आधार पर अनुशंषित उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें एवं रासायनिक जैव उर्वरकों के साथ साथ जैविक खादों एवं जैव उर्वरकों का उपयोग करें जिससे संतुलित उर्वरक प्रबंध हो सके। सरसों की फसल में थायायूरिया जैव नियामक के दो पर्णीय छिडक़ाव पहला फूल आने के समय एवं दूसरा छिडक़ाव फलियां बनने के समय 200 ग्राम को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर करना चाहिए। साथ ही प्रशिक्षण कार्यक्रम में धान तथा मक्का वाले खेतों में चना को 10 मिली ट्राईकोडर्मा प्रति किग्रा बीज दर से उपचारित कर बोने से चने में आने वाली उकठा की समस्या से निजात मिलेगा एवं मृदा की शक्ति अच्छी बनी रहेगी जिसमें किसानों का उत्पादन अच्छा होगा एवं उर्वरकों की लागत में कमी आएगी जिससे किसान अपनी आया दोगुनी कर सकते है। अलसी तथा मसूर की नवीन उन्नत किस्मों बीज उपचार की विधि एवं खाद उर्वरक प्रबंधन पर जानकारी प्रदान की गई।

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