6 हजार 343 हेक्टेयर भूमि डूब में आएगी
ज्ञापन में कहा गया है कि इस बांध से मात्र 8 हजार 780 हेक्टेयर में सिंचाई होगी, जबकि 6 हजार 343 हेक्टेयर भूमि डूब में आएगी। क्या काश्तकारों की 2 हजार 443 हेक्टेयर कृषि, एक हजार 793 शासकीय और 2 हजार 107 हेक्टेयर वन भूमि को डूबा कर 100 मेगावाट बिजली उत्पादन उचित है। जबकि ये जंगल जैव विविधता से परिपूर्ण है। इस बांध से मंडला के 18 व डिंडोरी जिले के 13 आदिवासी बहुल्य गांव के 27 सौ 35 परिवार विस्थापित होंगे। ज्ञापन में शंका जाहिर की गई है कि डूब क्षेत्र की गणना अभी तक टोपोशीट से ही हुआ है। जब प्रत्यक्ष गांव-गांव जाकर जमीनी सर्वे होगा तो विस्थापित होने वाले गांव और डूब जमीन के रकबा में बढ़ोतरी होगी। जिसका बड़ा उदाहरण बरगी बांध है।
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पेसा एक्ट को बनाया हथियार
दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मंडला जिला संविधान की पांचवी अनुसूचि आदिवासी क्षेत्र के लिए विशेष व्यवस्था के तहत वर्गीकृत है, जहां पेसा अधिनियम प्रभावशील है। इस परियोजना के सबंध में प्रभावित ग्राम सभा को किसी भी तरह की जानकारी नर्मदा घाटी विकास विभाग द्वारा नहीं दी गई है। यह आदिवासियों को पेसा नियम के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकारों का हनन है। बांध निर्माण के लिए मुम्बई की कंपनी को ठेका दिए जाने की सूचना स्थानीय समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ है। पांचवी अनुसूचि और पेसा अधिनियम के तहत प्राप्त अधिकार के दायरे में हमारी ग्राम सभा बांध बनाए जाने की स्वीकृति प्रदान नहीं करती है। उपस्थित समुदाय ने कलेक्टर से कहा कि बिजली बनाने के लिए आदिवासियों को उजाड़ना बंद होना चाहिए। मुख्यमंत्री से अनुरोध किया गया है कि इस बांध को तत्काल निरस्त करने की घोषणा करें। अन्यथा ग्रामीण इस बांध के विरोध में सड़कों पर संघर्ष के लिए मजबूर होंगे। जिसकी जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी।
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