माता के दरबार में एक परिवार के 6 पण्डा बल्ली, दुर्ग, मारी, बृजलाल, ईमरत व जियालाल द्वारा यहां पूजा-अर्चना की जाती रही है। पण्डा बृजलाल के देहांत के बाद लगभग 15 वर्ष के लिए मातारानी के पाट बंद रहे और हमारे पूर्वज ईमरत को स्वप्न आया कि वह यहां पण्डा बनकर मातारानी की सेवा करे फिर ईमरत पण्डा बने। उनके बाद जियालाल ने सेवा की। जियालाल के बाद अभी तक यहां कोई पण्डा नहीं है। ग्रामीण बताते है कि मातारानी जिसके स्वप्न में आती है और जिसे यहां पण्डा बनने की इजाजत देती है वही पण्डा बनकर सेवा करता है। स्थानीय निवासी महेन्द्र, प्रमोद ने बताया कि जब तक स्वप्र में किसी को निर्देश नहीं मिलते तब तक सेवा करने वाले लोग पट खोलना उचित नहीं समझ रहे हैं। श्रद्धालुओं को अब माता रानी के आदेश का इंतजार है। जब मातारानी का पट खुलता था तो दिल्ली, बम्बई, राजस्थान और बहुत दूर-दूर से श्रृद्धालू यहां आकर मन्नते करते थे और मुरादें पूरी होती थी। लेकिन मातारानी का दरबार बंद होने से श्रृद्धालुओं की संख्या कम होने लगी है।