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मंडला

19 साल से देवी मंदिर में पंडा का इंतजार, कम नहीं हुई लोगों की आस्था

मातारानी स्वप्न में पण्डा बनने की देती हैं इजाजत, लग रही श्रद्धालुओं की भीड़

मंडलाOct 16, 2021 / 12:28 pm

Mangal Singh Thakur

19 साल से देवी मंदिर में पंडा का इंतजार,  कम नहीं हुई लोगों की आस्था

19 साल से देवी मंदिर में पंडा का इंतजार, कम नहीं हुई लोगों की आस्था

मंडला। माता के मंदिर में नवरात्र पर श्रद्धालुओं की भीड़ लग रही है। पंडा पुजारी माता की सेवा में जुटे हुए हैं। जिले में कई मंदिर मढिय़ा ऐसे हैं जहां पंडा पुजारी की कई पीढिय़ां मां की सेवा में बीत गई। बीजाडांडी से 4 किलोमीटर दूर बारंगदा ग्राम की मढिय़ा में बिराजी मां शारदे भवानी में 19 वर्षों से श्रद्धालुओं को पंडा का इंतजार है। पंडा के न होने के कारण पट बंद पड़े हैं लेकिन यहां पूजा करने वाले श्रद्धालुओं की कमी नहीं है। नवरात्र के साथ सामान्य दिनो में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। स्थानीय लोगो की माने तो बारंगदा ग्राम की मढिय़ा में बिराजी शारदे भवानी संपूर्ण क्षेत्र में प्रसिद्ध है। यहां श्रृद्धा भाव से जो मन्नत की गई वह पूरी हुई है। लेकिन पिछले पण्डा के देहांत के बाद 19 वर्षो से मातारानी का दरबार बंद हो गया है व इतने वर्षो से यहां पूजा-अर्चना नहीं हो रही है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं ने बताया कि पूर्वजों अनुसार इस मढिय़ा की स्थापना लगभग 1500 ईसवी में की गई थी।


माता के दरबार में एक परिवार के 6 पण्डा बल्ली, दुर्ग, मारी, बृजलाल, ईमरत व जियालाल द्वारा यहां पूजा-अर्चना की जाती रही है। पण्डा बृजलाल के देहांत के बाद लगभग 15 वर्ष के लिए मातारानी के पाट बंद रहे और हमारे पूर्वज ईमरत को स्वप्न आया कि वह यहां पण्डा बनकर मातारानी की सेवा करे फिर ईमरत पण्डा बने। उनके बाद जियालाल ने सेवा की। जियालाल के बाद अभी तक यहां कोई पण्डा नहीं है। ग्रामीण बताते है कि मातारानी जिसके स्वप्न में आती है और जिसे यहां पण्डा बनने की इजाजत देती है वही पण्डा बनकर सेवा करता है। स्थानीय निवासी महेन्द्र, प्रमोद ने बताया कि जब तक स्वप्र में किसी को निर्देश नहीं मिलते तब तक सेवा करने वाले लोग पट खोलना उचित नहीं समझ रहे हैं। श्रद्धालुओं को अब माता रानी के आदेश का इंतजार है। जब मातारानी का पट खुलता था तो दिल्ली, बम्बई, राजस्थान और बहुत दूर-दूर से श्रृद्धालू यहां आकर मन्नते करते थे और मुरादें पूरी होती थी। लेकिन मातारानी का दरबार बंद होने से श्रृद्धालुओं की संख्या कम होने लगी है।

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