अंकिचन को मान दिया, इसलिए दुर्वा का चढ़ता है नैवेघ
गणपति ने अंकिचन को भी मान दिया है। इसलिए उन्हें नैवेघ में दुर्वा चढ़ाई जाती है। गणेशोत्सव जन-जन को एक सूत्र में पिरोता है। अपनी संस्कृति और धर्म का यह अप्रतिम सौंदर्य भी है। जो सबको साथ लेकर चलता है। श्रावण की पूर्णता, जब धरती पर हरियाली का सौंदर्य बिखेर रही होती है। तब मूर्तिकार के घर आंगन में गणेश प्रतिमाएं आकार लेने लगती हैं। प्रकृति के मंगल उद़्घोष के बाद मंगलमूर्ति की स्थापना का समय आता है। गणेशजी विघ्नों का समूल नाश करते हैं। कहा जाता है कि गणपति की आराधना से जीवन में सदामंगल होता है। विघ्नों के नाश एवं शुचिता व शुभता की प्राप्ति के लिए लंबोदर की उपासना विधि-विधान से करें। गणेश जी को ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है।
इसलिए है गणेश चतुर्थी का महत्व
एस्ट्रोलोजर रवीशराय गौड़ बताते है कि भादो मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इसकी मान्यता है कि भगवान गणेश का इसी दिन जन्म हुआ था। भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार के दिन मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था। इसलिए मध्याह्न काल में ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसे बेहद शुभ समय माना जाता है। हर माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत किया जाता है और यह व्रत इन सभी में सबसे उत्तम होता है।
इसलिए कहलाए एकदंत और गजानन
गौड़ ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि एक बार परशुराम जी शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत गए। तब शिव.पार्वती निद्रा में थे और गणेश जी बाहर पहरा दे रहे थे उन्होंने परशुराम को रोका इस पर विवाद हुआ और परशुराम ने अपने परशु से उनका एक दांत तोड़ दिया तभी से वह एकदंत कहलाए। भगवान शिव को रोक दिया था तो उन्होंने त्रिशुल से मस्तक काट दिया। इसके बाद जब पार्वती नाराज हुई तो शिवजी ने हाथी का सर काटकर गणेश के धड़ पर जोड़ दिया और इसी कारण उनका नाम गजानन हो गया। अन्य कथा के अनुसार विवाह के बहुत दिनों बाद तक संतान न होने के कारण पार्वती जी ने श्रीकृष्ण के व्रत से गणेश को उत्पन्न किया। शनि ग्रह बालक गणेश को देखने आए और उनकी दृष्टि पडऩे से गणेश जी का सिर कटकर गिर गयाए फिर विष्णु जी ने दोबारा हाथी का सिर जोड़ दिया।
शिव-पार्वती के वरदान ने बनाया प्रथम पूज्यनीय
गणेश जी और कार्तिकेय के बीच एक शर्त लगी थी। इस शर्त में गणेश जी अपने माता.पिता की परिक्रमा करने के बाद विजयी हुए उनके इस शर्त को जीतने के बाद शिव-पार्वती ने उन्हें वरदान दिया कि उन्हें सभी देवों सर्वप्रथम पूजा का हक दिया। तभी से वह प्रथम पूज्जयनीय कहलाए। जब देवतायों को इस बारे में पता चला तो वह सभी तुरंत गणेश जी की स्तुति के लिए वहां पहुंच गए। उन सभी देवों के साथ चंद्र देव भी थे। लेकिन स्तुति के लिए आगे नहीं आए और गणेश जी का गजमुख देखकर उपहास उड़ाने के लिए वह मुस्कुराने लगे। तब भगवान गणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया था। इसके बाद उन्होंने माफी मांगी तो उन्होंने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण होंगे अर्थात पूरी तरह से प्रकाशित होंगे।
गणपति की पूजन की यह है विधि
गणेश जी की पूजन में वेद मंत्र का उच्चारण किया जाता है। पूजन के लिए आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठकर पूजा करें। इसके साथ समस्त पूजन सामग्री के साथ दुर्वा, सिंदूर से लेकर मोदक विशेष रुप से चढ़ाए और आराधना करें। शुभ मुर्हुत में स्थापना के बाद गणपति की आराधना चतुदर्शी तक करें।