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मंदसौर

जाने इस बार की शरद पूर्णिमा क्यों है खास

जाने इस बार की शरद पूर्णिमा क्यों है खास

मंदसौरOct 13, 2019 / 11:19 am

Nilesh Trivedi

जाने इस बार की शरद पूर्णिमा क्यों है खास

जाने इस बार की शरद पूर्णिमा क्यों है खास

मंदसौर.
शरद पूर्णिमा पर्व रविवार को मनाया जाएगा। इस बार 30 साल बाद दुर्लभ योग बन रहा है। जो इस दिन को खास बना रहा है। अमृतयोग और सर्वार्थ सिद्धि योग है यह शुभ योग चंद्रमा और मंगल के आपस में दृष्टि संबंध होने से बन रहा है। चंद्रमा एवं मंगल के संयोग से महालक्ष्मी योग बन रहा है।
इस दिन खीर खाई जाती है। इसके भी वैज्ञानिक व पौराणिक लिहाज से महत्व है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के चार माह के शयनकाल का शरदपूर्णिमा पर अंतिम चरण होता है। कई वैज्ञानिक और पोराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व का महत्व बढ़़ जाता है। इसके साथ ही शरद पूर्णिमा पर वर्षा ऋतु की पूर्ण रुप से विदाई मानी जाती है और इसी दिन से शीतऋतु का आगमन भी होता है।

गजकेसरी का भी शुभ संयोग इस बार बन रहा है
एक्सटोलोजर रवीशराय गौड़ ने बताया कि पूर्णिमा तिथि रविवार की रात 12.36 मिनट से शुरु हो रही है और समाप्त 14 अक्टूबर की रात 2.38 बजे तक रहेगी। चंद्रोदय का समय 13 अक्टूबर की शाम 5.26 मिनट का है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा मीन राशि और मंगल कन्या राशि में रहेगा। इस तरह दोनों ग्रह आमने-सामने रहेंगे। वहीं मंगल हस्त नक्षत्र में रहेगा। जो कि चंद्रमा के स्वामित्व वाला नक्षत्र है। इससे पहले ग्रहों की ऐसी स्थिति 14 अक्टूबर 1989 में बनी थी। 6 अक्टूबर 2006 और 20 अक्टूबर 2002 में भी चंद्रमा और मंगल का दृष्टि संबंध बना था। इस बार मंगल, चंद्रमा के नक्षत्र में नहीं था। इनके अलावा चंद्रमा पर बृहस्पति की दृष्टि भी पडऩे से गजकेसरी नाम का एक और अत्यंत शुभ योग भी बन रहा है।

पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पृथ्वी के अत्यधिक निकट होता है
गौड़ के अनुसार शरद पूर्णिमा पर खीर खाने को फलदायी माना जाता है। इसके पीछे वैज्ञानिक और पौराणिक दोनों मान्यताएं हैं। ऋर्षियों का चिंतन है और पूराणों में उल्लेख है कि पूर्णिमा की मध्यरात्रि में चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त अमृत वर्षा होने पर ओस के कण के रूप में अमृत की बूंदें गिरती हैं। इसलिए रात को चांदी के पात्र में खीर को रखा जाता है। ताकि अमृत के कण खीर के पात्र में गिरे और यह अमृत तुल्य हो जाती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यधिक निकट आ जाता है और इस ऋतु में मौसम साफ रहता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र किरणों का शरीर पर पडऩा शुभ माना जाता है। इसका वैज्ञानिक तथ्य भी है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होती है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इसी के चलते सदियों से ऋषि.मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है।

पूर्णिमा पर नो लाख गोपिकाओं के साथ किया था महारास
गौड़ ने बताया कि शरद पूर्णिमा के ही दिन भगवान कृष्ण ऋषि स्वरूपा नो लाख गोपिकाओं के साथ स्वयं के ही नो लाख अलग-अलग गोपों के रूप में महारास रचाया था। कहा तो यह भी जाता है कि महालक्ष्मी पृथ्वी पर घर-घर जाकर सबको दुख दारिद्रय से मुक्ति का वरदान देती हैं किंतु जिस घर के सभी प्राणी सो रहे होते हैं वहां से लक्ष्मी दरवाजे से ही वापस चली जाती है। शरद पूर्णिमा को महालक्ष्मी का जन्मदिन है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन लक्ष्मी समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थी। सूर्यास्त के बाद देवी लक्ष्मी की पूजा करना भी लाभकारी माना गया है।

मनुष्य के मन का प्रतीक है चंद्रमा
चंद्रमा हमारे मन का प्रतीक है। हमारा मन भी चंद्रमा के समान घटता-बढ़ता है और सकारात्मक और नकारात्मक विचारों से परिपूर्ण होता है। जिस तरह अमावस्या के अंधकार से चंद्रमा निरंतर चलता हुआ पूर्णिमा के पूर्ण प्रकाश की यात्रा पूरा करता है। इसी तरह मानव मन भी नकारात्मक विचारों के अंधेरे से आगे बढ़ता हुआ सकारात्मकता के प्रकाश को पाता है।

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