ये बात उस चर्चा में निकला है, जो शनिवार शाम को सेवानिवृत पुलिस अधिकारी स्वालेह मोहम्मद खान के निवास पर हुई। असल में कुछ दिन पूर्व खाने ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की थी, उसमे इस बात का उल्लेख था की अब होली हो या ईद, पड़ोंसी को भी समय नहीं है। सभी मोबाइल पर ही बधाई देते है। इस पोस्ट में उमडी़ संवेदनाओं के साथ व्यस्तता के दौर में तार-तार होते मानवीय रिश्तों पर करारा हमला किया गया था। इसी बात को शहर के समता नगर में रहने वाले शिक्षक जिया खान ने आगे बढ़ाया।
…ओर तय हो गया शाम ५ बजे का समय
जब खान के बाद जिया ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की तो बेहतर रिस्पांस मिला। मोबाइल पर आपस में बतियाने वाले एक ही शहर के लोग आपस में मिलेंगे। शनिवार शाम को ५ बजे सेवानिवृत पुलिस अधिकारी खान के घर पर जब मेल-मुलाकात का दौर चला को शहर की एक के बाद एक कई पुरानी यादों को ताजा किया गया। इसमे राजेश मूणत ने जहां रंगपंचमी की गैर में मुस्लिमों के योगदान का उल्लेख किया तो जिया ने बताया की वे तो बचपन में मंदिर में आरती में जाते ही प्रसाद के लालच में थे। चिंतक विष्णु बैरागी ने जहां दवाओं के बढते मूल्य पर चिंता प्रकट की तो अरविंद व्यास ने शहर में मिलजुलकर रहने की बात पर जोर दिया। इन सब के बीच सेवानिवृत पुलिस कर्मचारी नाहरू खान,, ताज मोहम्मद खान व अली मोहम्मद ने भी विचार प्रकट किए। सबसे अंत में शाहिद मीर ने कहा की महात्मा गांधी ने शहर की एकता की तारीफ की है।
आपस में बात करना जरूरी : ये सबसे विचित्र दौर में हम जी रहे है। यहां बेटा कमरे में खांसते पिता की दवा की चिंता के बजाए दूर देश के दोस्त के बे्रकफास्ट की चिंता करता है। एेसे में मुझे लगता है की कही न कही बातचित आपस में जरूरी है। इसलिए निर्णय लिया की हर सप्ताह शनिवार को शाम ५ बजे इस प्रकार का आयोजन किया जाएगा। सभी से कहना चाहता हूं की वे भी अपने मोहल्ले में इस प्रकार के आयोजन करें। – स्वालेह मोहम्मद खान, सेवानिवृत एएसपी