साधारण पुरुष भी मर्यादा में रहकर पुरुषोत्तम बन सकता है
कोई भी पुरुष अपने कर्मो को मर्यादा में रहकर सम्पादित करे तो वह सभी पुरुषों में उत्तम हो जाता है वह पुरुषोत्तम बन जाता है। परमेश्वर होते हुए भी श्रीराम ने अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी। यह बात पंडित अमन बैरागी ने कहीं। वे गरोठ में आयोजित भागवत कथा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मानव जीवन व्यतीत करते हुए उन्होंने जन्म लिया, शिक्षा प्राप्त की, वनवास भोगा, मित्रता निभाई। संतान, भाई, पति- पिता और राजा धर्म निभाया। वे चाहते तो बगैर लीला धरे रावण को नष्ट कर सकते थे परंतु ‘मर्यादा’ में रहकर ही उन्होंने जीवन पर्यन्त सुख की अपेक्षा कष्टदायी राह को अपनाकर मर्यादा की महिमा को रामलीला द्वारा स्पष्ट किया तथा यह सन्देश दिया कि मर्यादा वाला जीवन ही रामराज्य कहलाता है। कथा के उत्तरायण समय में भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। तेज वर्षा के मध्य जब भागवत कथा में कान्हा के जन्मकाल का प्रसंग आया तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। रविवार की कथा में श्रीकृष्ण लीला, रुक्मणी मंगल, गोवर्धन पूजा के प्रसंग एवं छप्पन भोग का आयोजन होगा।