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मंदसौर

विकट परिस्थितियों में भी ले संकल्प, समस्याएं हो जाएगी हल

विकट परिस्थितियों में भी ले संकल्प, समस्याएं हो जाएगी हल

मंदसौरJan 21, 2019 / 10:08 pm

Rahul Patel

patrika

विकट परिस्थितियों में भी ले संकल्प, समस्याएं हो जाएगी हल

मंदसौर.
मनुष्य को अपने अंत:करण के ज्ञान की अनुमति अनुभूति प्रेम व ध्यान के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। यह बात भानपुरा पीठ के शंकराचार्य दिव्यानंद महाराज ने गरोठ में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कहीं। कथा के छठे दिन भानपुरा पीठ के युवाचार्य स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि वृंदावन गोकुल क्षेत्र में अनेकानेक असुरों ने उत्पात मचा रखा था तो नारायण के कृष्णरुपि अवतार ने मानव शरीर धारण कर समस्त असुरों का संहार कर दिया। उन्होंने बताया कि नारायण ने कृष्ण अवतार से यह सिद्ध किया कि मानव कितनी भी विकट परिस्थितियां आने एवं घोर से घोर संकट आने पर भी यदि कोई संकल्प कर लें तो समस्त समस्याएं स्वत: हल हो जाती हैं। आत्मलाभ परम् लाभ है। अपने अन्त:करण में स्थित परमेश्वर का दर्शन ही परम उद्देश्य की प्राप्ति हैं।


प्रतिमा में विश्वास की होती है प्राण-प्रतिष्ठा
मूर्ति स्थापना पर उन्होंने कहा कि प्रतिमा में विश्वास की प्राण- प्रतिष्ठा की जाती हैं और यह विश्वास संकल्प के द्वारा उत्तम फल प्रदान करता है। इस अवसर पर दिव्यानन्द महाराज ने बताया कि १०वां स्कंध श्रीमद भागवत पुराण का हृदय स्थल है। उन्होंने बताया कि सनातन धर्म संस्कृति में नामकरण संस्कार भगवनस्मरण के लिए किया जाता हैं किंतु वर्तमान में औचित्य हीन नामावली के कारण यह संस्कार अपनी आभा छोड़ता जा रहा है। उन्होंने पिता पुत्री के मिलन से भी पवित्र कृष्ण और गोपी का वासनारहित मिलन बताया।


मनुष्य को कृष्ण होने की अनुभूति नहीं होती हैं
तमोगुण, रसोगुण, सतोगुण ये तीनों बाधा पवित्र मिलन की मूल बाधाएं हैं। इन पर विजय पाये बगैर रास नृत्य में प्रवेश असम्भव हैं। मौन पर कहा कि यह दुर्लभतम अवस्था है,एक मौन हजार बकवाद पर भारी होता हैं। मनुष्य को कृष्ण होने की अनुभूति नहीं होती हैं, सन्त को यह आशा होती हैं कि वह कृष्ण रूप हो सकते है लेकिन कृष्ण को यह ज्ञात था कि वे परमेश्वर ही है ज्ञान की अनुभूति के अन्त:करण के कारण उन्होंने द्वापर की सभी समस्याओं का अंत किया। अन्त:करण के ज्ञान की अनुभूति हमें प्रेम और ध्यान के द्वारा प्राप्त होगी। वर्तमान व्यवस्थाओ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के स्थान पर प्रशासनिक तंत्र ने अधिकारियों की संख्या बढ़ा दी है किंतु अधीनस्थ कर्मचारियों के अभाव में बढ़ती अधिकारियों की संख्या का क्या औचित्य है।

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