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मंदसौर

पाश्चात्य संस्कृति और पढ़ाई ने ऐसा पढ़ाया की मां मम्मी बन गई

पाश्चात्य संस्कृति और पढ़ाई ने ऐसा पढ़ाया की मां मम्मी बन गई

मंदसौरJan 10, 2019 / 06:56 pm

harinath dwivedi

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पाश्चात्य संस्कृति और पढ़ाई ने ऐसा पढ़ाया की मां मम्मी बन गई

मंदसौर । भागवत कथा में गुरुवार को कमलकिशोर नागर ने गाय और मां के महत्व को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति का चलन हावी न होने दे। नागर ने कहा कि गाय युगो युगांतर से पूज्यनीय है। मां कामधेनू एक गाय थी जिसमें 36 कोटीश देवता निवास करते है। अब गाय का स्थान जर्सी गाय ने ले लिया है। आज हम जर्सी गाय का दूध पीते है जहां देखो वहां जर्सी गाय ये भारतीयों को हो क्या गया है। देशी गाय जब रंभाती है तो मां की ध्वनि गुजांयमान हो जाती है। यह महिमा है हमारी गोमाता की।
मां एक ऐसा शब्द है जिसमें पूरा ब्रह्माण समाया है। चरणों में स्वर्ग है। पाश्चात्य संस्कृति और पढाई ने ऐसा मूर्ख बनाया कि मां मम्मी बन गई। भगवान कृष्ण बालरूप में थे तो मां यशोदा से यही कहा था कि मां तू सब कुछ छूडा देना मेरा चंचलपन, नटखटपन सब लेकिन अपना दूध मत छूडाना क्योकि जब कलयुग प्रारंभ हो जाएगा तो मां नहीं मिलेगी मम्मी मिलेगी ओर वह स्तनपान नहीं कराएगी बाटल में भरकर दूध पिलाएगी। ममता गई कहां मां कैसे मम्मी बन गई अगर अब भी सुधार नहीं हुआ और मां को मम्मी बनाते रहे तो फिरते फिरना, स्वर्ग को ढूंढते रहना कि है कहां शास्त्र तो मां के चरणों में ही स्वर्ण बता रहे थे।
नंद के लाल गोपाल की पूजा में दोष नहीं लगता
कथा में नागर ने कहा कि बडे देव की पूजा बडी कठिन होती है नियम से होती है लेकिन भगवान बालकृष्ण की पूजा में कोई नियम न भी हो तो वह दोष नहीं लगता। क्योकि बच्चे कभी नाराज नहीं होती और ना कोई बडी आशा रखते है। द्वारकाधीश को ना विधिविधान से पूज सको को बालगोपाल को दही मिश्री का ही भोग लगा देना वो खुश हो जाएंगे हमारा कल्याण कर देंगे।
जिस दिन से मोबाईल चलाया तो समझो बात गई हाथ से
नागर ने कहा कि शासन ने 18 वर्ष की आयु में विवाह का कानून बनाया है लेकिन मोबाईल किस उम्र में देना है ऐसा कानून नहीं बनाया। आज सारे फसाद की जड है तो ये मोबाईल, रिश्ते बनते समय लगता है टूटते नहीं मालम पडती है कि लाडी मोबाईल चलावे दूसरे से बात करती है। एक लडकी के हाथो में अगर मोबाईल है तो समझ जाओ कि उसकी शादी भी हो गई। चाहे घर वाले लाख कहते रहे कि अभी होशियार नहीं हुई अरे क्योकि शादीयां तीन प्रकार की होती है चिंतन से, वाचन से और काया से तो जिस दिन मोबाईल रखना शुरू किया तो वाचन से तो शादी हुई फिर वो चिंतन से भी शादी हो गई और फिर काया से होते क्या देर लगती है।
कोर्ट ने निर्णय लिया तो धिक्कार है ऐसे निर्णयों पर
नागर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जज ने फैसला दे दिया कि पत्नी पुरूष की आज्ञा में नहीं चलेगी वह जहां चाहे वहां जा सकती है। जिसके साथ रहना चाहे रह सकती है कोई गलत नहीं है। शराब को व्यसन नहीं माना जाए। वैश्या से संबंध रखा तो व्याभिचार नहीं माना जाएगा। कन्याशालाओं में गर्भपात के लिए चिकित्सक नियुक्त कर सकते है। ये ऐसे नियम बन चुके है इतना होने के बावजूद भी किसी ने विरोध नहीं किया। बडे बडे बुद्धिजीवी चूपचाप है कैसी पढाई करी कैसे बडे आदमी बने कैसे देश के भाग्यविधाता बने कि धर्म ही नष्ट हो जाए ऐसी सुप्रीम कोर्ट कानून की किताब में लेखनी लिख दी जा रही है। छूट दी जा रही है ऐसा न्याय हो परिपाटी चलाई जा रही है बावजूद कोई आगे आएं ना आए मै और समस्त जैन संत, धर्माचार्य इसको लेकर एक कथा आयोजित करने वाले है और विरोध कर एक अध्यादेश लाकर ऐसे कानून को खत्म कराना चाहते है क्योकि अगर ये सब कानून बन गए तो यह धरती नष्ट हो जाएगी। चारो दिशा में पापी बढ़ जाएंगे। धर्म खत्म हो जाएगा और धर्मसंकट की घडी आ जाएगी।
हम सब ईश्वर के बनाएं खिलोने है
उन्होंने कहा कि हम सब ईश्वर के बनाएं हुए खेल खिलोने के है बच्चा जब खिलोने से खेलता है तो जब तक वो खिलोना तोड ना दे तब तक उसे मजा नहीं आता आनंद नहीं आता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी मामा कंस के द्वारा भेजे गए राक्षसों को खिलोना समझा और उन्हे तोड दिया। खिलाडी परमात्मा को कितना आनंद आया। नागर ने कहां कि जीवन ऐसा जीयों की नाम हो जाए और कार्य ऐसा करो की काम हो जाए। नहीं तो जैसे आए वैसे चल दिए सिर्फ धन कमाया और नाम नहीं कमाया तो जीवन में एक बाद याद रखना नाम कमाने वाली हस्ती को लोग याद करते है। जीवन में अगर जाग्रत हो तो धर्म के मार्ग पर चलना प्रारंभ कर देना। सत्संग में बैठना, कथा में जाना प्रारंभ कर देना तो नाम भी हो जाएगा और भव सागर से तरने का काम भी हो जाएगा।
कथा में शिव का कृष्ण बालरूप दर्शन, व्यसन, गोवर्धनलीला, मुख में ब्रह्माण दर्शन, पूतना प्रसंग, अभिमान और छोटे रहकर माया से तरने, भारत की संस्कृति को जीवित रखने, अस्त व्यस्त जीवनशैली को सुधारने जैसे कई प्रसंगो की व्याख्या कर धर्मालुजनो को जीवन जीने कला सिखाई। नागरद्वारा भजनों के गायन पर यहां मौजूद लोग झुमते नजर आए। गुरूवार को आयोजित कथा में हजारो की संख्या में धर्मालुजन उपस्थित हुए।

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