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रिकॉर्ड ऊंचाई छूकर वर्ष 2015 में बाजार 5 फीसदी गिरा

सेंसेक्स में करीब पांच फीसदी और निफ्टी में करीब 4.1 फीसदी की गिरावट हुई

Jan 01, 2016 / 09:34 am

अमनप्रीत कौर

Sensex

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मुंबई। देश के शेयर बाजारों ने बीते एक वर्ष में रिकॉर्ड ऊंचाई नाप ली, लेकिन विभिन आर्थिक परिस्थितियों में साल के खत्म होते-होते इसकी चमक काफी हद तक धूमिल हो गई और बाजार आखिरकार गत एक साल में गिरावट के साथ बंद हुआ। ऊंचाई का कीर्तिमान बनाने के बाद भी गत एक साल में बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स में करीब पांच फीसदी और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी में करीब 4.1 फीसदी गिरावट हुई।

एंजल ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष और शोध प्रमुख वैभव अग्रवाल ने हालांकि कहा, ‘यह साल ठहराव का साल था और जिसने आने वाले महीनों में तेज छलांग की नींव तैयार की है।’ बाजार में गिरावट का कारण बताते हुए जायफिन एडवाइजर्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी देवेंद्र नेवगी ने कहा, ‘बड़े सुधारात्मक कदमों के अभाव में, चीन जैसी अर्थव्यवस्था में गिरावट और कंपनियों की आय में कमी और राजनीतिक गतिरोध की वजह से बाजार में गिरावट रही।’

सेंसेक्स के 30 शेयरों में गत एक साल में मारुति सुजुकी में सर्वाधिक 38.7 फीसदी तेजी रही, जबकि भेल में सर्वाधिक 36.2 फीसदी गिरावट रही। सेक्टरों में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु सेक्टर में गत एक साल में सर्वाधिक 24 फीसदी तेजी रही, जबकि धातु सेक्टर में सर्वाधिक 31.2 फीसदी गिरावट रही। बीते वर्ष सेंसेक्स ने चार मार्च को 30,024.74 की रिकॉर्ड ऊंचाई छू ली, जबकि इसी दिन निफ्टी ने भी 9,119.20 की रिकार्ड ऊंचाई छूई। नेशनल सिक्योरिटीज डिपोजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीओ) ने बीते वर्ष में शेयर और बांड में शुद्ध 63,663 करोड़ रुपए का निवेश किया।

इसी दौरान घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने शेयर बाजार में 67,586.82 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया। गत एक साल में कई कंपनियों ने प्रथम सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) जारी किए। इस बीच मिडकैप और स्मॉलकैप ने मुख्य सूचकांकों को पछाड़ दिया। बीएसई के मिडकैप में 7.4 फीसदी और स्मॉलकैप में 6.8 फीसदी तेजी रही। इस साल बाजार की गिरावट का एक प्रमुख कारण रहा अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ओर से मुख्य दर बढ़ाने को लेकर कयासबाजी, जो दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक चली, जब आखिरकार फेड ने करीब एक दशक बाद अपनी दर बढ़ा ही दी।

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