मथुरा

संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी के दिन दंपति इस कुंड में करें स्नान, पूरी होगी मनोकामना!

हर साल मथुरा स्थित राधाकुंड में अहोई अष्टमी के दिन शाही स्नान का आयोजन किया जाता है।

मथुराOct 17, 2019 / 02:23 pm

suchita mishra

ahoi ashtami snan

मथुरा। करवाचौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का त्योहार आता है। जिस तरह करवाचौथ का व्रत निर्जल रखा जाता है, उसी तरह अहोई अष्टमी का व्रत भी निर्जल होता है। Ahoi Ashtami Vrat संतान की दीर्घायु के लिए किया जाता है। इस बार अहोई अष्टमी 21 अक्टूबर को है। जिन लोगों की संतान नहीं है, उन लोगों के लिए भी ये दिन काफी महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन जो दंपति मथुरा के प्रमुख तीर्थ स्थल राधाकुंड में स्नान करते हैं, उन्हें संतान प्राप्ति होती है। हर साल राधाकुंड में शाही स्नान का आयोजन किया जाता है। बता दें कि राधाकुंड गोवर्धन पर्वत परिक्रमा मार्ग में स्थित है।
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भगवान कृष्ण ने किया था स्नान
माना जाता है कि राधाकुंड की स्थापना अहोई अष्टमी के दिन ही हुई थी। भगवान श्रीकृष्ण ने इस कुंड में रात करीब 12 बजे स्नान किया था इसलिए आज भी यहां अहोई-अष्टमी के दिन एक विशेष स्नान होता है। स्नान पति-पत्नी साथ में मिलकर करते हैं। मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन पति पत्नी के इस कुंड में साथ स्नान करने से नि:संतान दंपति को संतान-सुख की प्राप्ति होती है। हर साल राधाकुंड पर अहोई-अष्टमी के दिन एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश-विदेश से आये लाखों भक्त शामिल होकर स्नान करते हैं। स्नान करने से पहले सभी दंपत्ति साथ मिलकर कुंड के तट पर स्थित अहोई माता के मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और आरती कर कुंड में दीपदान करते हैं। उसके बाद रात में ठीक 12 बजे जब अहोई-अष्टमी की शुरुआत होती है तो विशेष स्नान शुरू हो जाता है।
गौहत्या का मिट जाता है पाप
कुंड के बारे में एक और मान्यता है कि यहां स्नान से गौहत्या का पाप मिटता है। इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है कि एक बार भगवान कृष्ण यहां अपने ग्वालों के साथ गाय चरा रहे थे, तब कृष्ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नाम का राक्षस गाय के वेश में आकर उनकी गायों को मारने लगा। जब उसने भगवान कृष्ण पर हमला किया तब उन्होंने अरिष्टासुर का वध कर दिया। चूंकि अरिष्टासुर उस वक़्त गाय के वेश में था, इसलिए राधा जी ने इसे गौहत्या मान कृष्ण से प्राश्चित करने की बात कही। उसके बाद कृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाई और बांसुरी से वहां एक गड्ढा खोदा, जिसमें सभी तीर्थों का आह्वान किया। तब कृष्ण ने उस कुंड में स्नान कर अपने गौहत्या के पाप को दूर किया। तब से इस कुंड को राधाकुंड के नाम से जाना जाता है।
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