जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम सिंह तरकर ने बताया कि बीते साल, 23 दिसंबर को श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन समिति के अध्यक्ष एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह और एडवोकेट राजेंद्र माहेश्वरी ने सिविल जज (प्रवर वर्ग) की अदालत में वाद दाखिल किया था। अदालत ने इसे उसी दिन दर्ज कर सुनवाई की। इस मामले में 19 फरवरी को सुनवाई होनी थी, लेकिन सोमवार को वादीगण एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह व अन्य अचानक अदालत पहुंचे। उन्होंने मांग की कि यह चूंकि संपत्ति का विवाद है, अतः इस विवाद में तथ्य जुटाने के लिए अमीन कमीशन टीम को मौके पर भेजा जाए।
शाही ईदगाह में बाकी हैं अवशेष
वादीगणों का कहना था कि हमारी अमीन कमीशन बनाने की मांग इसलिए है कि आज भी शाही ईदगाह में वह अवशेष बाकी हैं, जो वहां पर मंदिर होने का प्रमाण देते हैं। दीवारों पर श्रीकृष्ण और उनसे संबंधित कुछ पच्चीकारी (चित्र) आदि चिह्न आज भी मौजूद हैं। जिससे अमीन कमीशन से केस के लिए तथ्य जुटाने में आसानी होगी। महेंद्र प्रताप सिंह के अलावा चार फरवरी को ठाकुर केशवदेव मंदिर के सेवायत पवन कुमार शास्त्री का मामला भी अदालत में दर्ज हो चुका है। उनके द्वारा भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान से संबंधित कटरा केशवदेव की 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक का दावा किया गया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर-मस्जिद मामले में अगली सुनवाई 17 को
इलाहाबाद हाईकोर्ट में काशी के ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के मामले में अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी। मंदिर पक्ष ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि काशी में तत्कालीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर उसे ज्ञानवापी मस्जिद का रूप दे दिया गया। तहखाने सहित चारों ओर की भूमि पर हिन्दुओं का वैध नियंत्रण होने की बात भी कही गई। विश्वनाथ मंदिर पक्ष ने बताया कि अभी भी मस्जिद के पीछे शृंगार गौरी की पूजा की जाती है। नंदी का मुख भी मस्जिद की तरफ है, जो बताता है कि वही मंदिर हुआ करता था। जहां मुस्लिम समाज नमाज पढ़ता है, वो विवादित ढांचे के तहखाने की छत है। मंदिर पक्ष ने याद दिलाया कि इस्लाम में विवादित स्थल पर पढ़ी गई नमाज कबूल ही नहीं होती है, इसीलिए अवैध कब्जे के खिलाफ वाद पर सुनवाई चलनी चाहिए और इस पर आपत्ति जताने वाले याचिका को ख़ारिज किया जाए। वहीं मस्जिद पक्ष कानून का हवाला देकर 1947 की मंदिर-मस्जिद की स्थिति में बदलाव न किए जाने की दलीलें दे रहा है।