1. तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास ने की थी स्थापना बांके बिहारी मंदिर की स्थापना स्वामी हरिदास ने की थी। स्वामी हरिदास जी प्राचीन काल के मशहूर गायक तानसेन के गुरु थे। 2. स्वयं प्रकट हुई थी मूर्ति
स्वामी हरिदास भगवान कृष्ण के भक्त थे। वे निधिवन में तमाम भजन आदि गाकर श्रीकृष्ण की भक्ति किया करते थे। उन्हें राधा कृष्ण दर्शन दिया करते थे। एक दिन वृंदावन के लोगों ने हरिदास जी से कहा कि वे भी राधा कृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं तब हरिदास जी ने राधा कृष्ण की आराधना कर लोगों की बात उनसे कही। ध्यान व पूजन के बाद जब उन्होंने आंखें खोलीं तो इस मूर्ति को अपने समक्ष पाया था।
3. मंदिर बनने से पहले निधिवन में होती थी पूजा मूर्ति प्राप्त होने के बाद स्वामी हरिदास ने शुरुआत में तो बांकेबिहारी जी की निधिवन में ही सेवा की। फिर जब मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया, तब उनको मंदिर में आम जनता के दर्शन के लिए स्थापित किया गया।
4. राधा कृष्ण का विग्रह रूप हैं बांके बिहारी बांके बिहारी राधा कृष्ण का विग्रह यानी सम्मिलित रूप है। यही कारण है कि बांके बिहारीजी के श्रृंगार में आधी मूर्ति पर महिला और आधी मूर्ति पर पुरुष का श्रंगार किया जाता है।
5. मूर्ति के आगे हर दो मिनट में लगाया जाता है पर्दा श्री बांके बिहारी जी की मूर्ति के आगे हर दो मिनट के अंतराल पर पर्दा लगाया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि उनकी छवि को लगातार प्रेमपूर्वक एक टक निहारते रहने से वे भक्त की भक्ति के वशीभूत होकर उसके साथ चले जाते हैं।
6. मूर्ति की आंखों से आंखें मिलाते हैं भक्त बांके बिहारी सिर्फ प्रेम के भूखे हैं। वहीं मान्यता है कि वे भक्त की भक्ति के वशीभूत हो जाते हैं। इसलिए इस मंदिर में आकर आंखें बंद करके पूजा नहीं की जाती, बल्कि बांके बिहारी की आंखों में आंखें डालकर उन्हें निहारा जाता है। कहा जाता है कि बांके बिहारी की मूर्ति में ऐसा आकर्षण है जो भक्त को अपनी ओर खींचता है। उसकी आंखों से स्वयं आंसू गिरने लगते हैं।
7. विहार पंचमी के रूप में मनाया जाता है प्राकट्य दिवस बांके बिहारी की मूर्ति मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को निधिवन स्थित विशाखा कुण्ड से प्रकट हुई थी। बांके बिहारी की प्राकट्य तिथि को हर साल विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन वृंदावन में कई धार्मिक आयोजन होते है। बिहार पंचमी के दिन ही चरणामृत के स्थान पर भक्तों को पंचामृत बांटा जाता है
8. सिर्फ जन्माष्टमी पर होती मंगला आरती
बांके बिहारी जी के मंदिर में मंगला आरती साल में केवल एक दिन जन्माष्टमी को ही होती है। इस दिन बांके बिहारी जी के दर्शन सौभाग्यशाली को ही हो पाते हैं।
बांके बिहारी जी के मंदिर में मंगला आरती साल में केवल एक दिन जन्माष्टमी को ही होती है। इस दिन बांके बिहारी जी के दर्शन सौभाग्यशाली को ही हो पाते हैं।
9. अक्षय तृतीया पर होते हैं चरण दर्शन बांके बिहारी जी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है। मान्यता है कि इन चरण-कमलों का जो दर्शन करता है उसका तो बेड़ा ही पार लग जाता है।
10. इसलिए कहा जाता है बांके बिहारी
भगवान कृष्ण को बांके बिहारी नाम स्वामी हरिदास ने दिया था। भगवान कृष्ण की हर मुद्रा को बांके बिहारी नहीं कहा जाता, बल्कि तीन कोण पर झुकी हुई मुद्रा वाले श्रीकृष्ण को बांके बिहारी के नाम से पुकारा जाता है। तीन कोण यानी होठों पर बांसुरी लगाए, कदम्ब के वृक्ष से कमर टिकाए और एक पैर में दूसरे को फंसाए हुई मुद्रा में श्रीकृष्ण को बांके बिहारी कहा जाता है।
भगवान कृष्ण को बांके बिहारी नाम स्वामी हरिदास ने दिया था। भगवान कृष्ण की हर मुद्रा को बांके बिहारी नहीं कहा जाता, बल्कि तीन कोण पर झुकी हुई मुद्रा वाले श्रीकृष्ण को बांके बिहारी के नाम से पुकारा जाता है। तीन कोण यानी होठों पर बांसुरी लगाए, कदम्ब के वृक्ष से कमर टिकाए और एक पैर में दूसरे को फंसाए हुई मुद्रा में श्रीकृष्ण को बांके बिहारी कहा जाता है।