script#UPDusKaDum रहस्यों से भरा पड़ा है निधिवन, जानिए यहां की दस ऐसी बातें जो आपको हैरान कर देंगी… | DusKaDum know about nidhivan most mysterious place of mathura | Patrika News
मथुरा

#UPDusKaDum रहस्यों से भरा पड़ा है निधिवन, जानिए यहां की दस ऐसी बातें जो आपको हैरान कर देंगी…

मथुरा से 10 किमी. दूर वृंदावन में स्थित है निधिवन, जानिए यहां की हैरान कर देने वाली बातें।

मथुराAug 13, 2019 / 12:27 pm

suchita mishra

Nidhivan

Nidhivan

मथुरा। हमारे देश में आज भी ऐसी कई चमत्कारिक स्थान हैं, जिनके बारे में जानकर विश्वास करना मुश्किल होता है। जिन पर बड़े बड़े अपने अपने तर्क के साथ वैज्ञानिक रिसर्च के लिए भी आए लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। ये स्थान तमाम लोगों की आस्था का केंद्र हैं। इन्हीं स्थानों में से एक स्थान है निधिवन। निधिवन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले से करीब 10 किलोमीटर दूर बसे वृंदावन में है। निधिवन को लेकर मान्यता है कि यहां आज भी हर रात कृष्ण गोपियों संग रास रचाने के लिए आते हैं। शाम होने के बाद यहां इंसान ही क्या कोई जानवर या पक्षी भी नहीं भटकता। यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा सदियों से होता चला आ रहा है। आइए जानते हैं निधिवन से जुड़ी अद्भुत रहस्यमयी ऐसी बातों को जो आज भी समझ से परे हैं।
1. आपस में गुंथे हुए निधिवन के वृक्षों की ये है मान्यता

Nidhivan
निधिवन लगभग दो से ढ़ाई एकड़ क्षेत्रफल में फैला है। कहा जाता है कि यहां लगे पेड़ों की संख्या सोलह हजार है। वृक्षों की खासियत यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे तथा इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत होती हैं। मान्यता है कि ये वृक्ष भगवान कृष्ण की सोलह हजार रानियां हैं जो आपस में एक दूसरे के गले में बांहें डाली हुई हैं।
2. अर्द्धरात्रि के बाद भगवान श्रीकृष्ण करते हैं रासलीला

krishna radha
निधिवन को लेकर मान्यता है कि हर रोज यहां अर्द्धरात्रि के बाद भगवान श्रीकृष्ण व राधारानी रास रचाते हैं। इस दौरान सभी वृक्ष उनकी रानियां बन जाती हैं। इस अद्भुत दृश्य को देखने की मनाही है। इस कारण यहां शाम सात बजे की आरती का घंटा बजते ही आसपास के घरों की खिड़कियां बंद हो जाती हैं और पूरा इलाका वीरान हो जाता है।
3. शाम को सजाया जाता है चंदन का पलंग

Nidhivan Bed for lord krishna
निधिवन के अंदर एक रंग महल है। इस रंग महल में रोजाना राधा और कृष्ण के लिए चंदन की पलंग को शाम सात बजे के पहले पूरी तरह सजा दिया जाता है। पलंग के ही बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग मीठा पान रख दिया जाता है। मान्यता है कि रास के बाद भगवान यहां शयन करते हैं।
4. सुबह मिलता है ऐसा दृश्य जो कर देता है हैरान

Nidhivan
रंग महल का दरवाजा सुबह पांच बजे खोला जाता है। उस समय ऐसा दृश्य देखने को मिलता है, जो सभी को हैरान कर देता है। बिस्तर अस्त-व्यस्त मिलता है, लोटे का पानी खाली होता है, दातुन कुची हुई नजर आती है और पान खाया हुआ मिलता है व सिंदूर बिखरा हुआ मिलता है।
5. रंग महल में लगता है माखन मिश्री का भोग

Nidhivan
रंग महल में आज भी प्रसाद में माखन मिश्री ही रखा जाता है। सुबह भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही यहां चढ़ाते हैं और प्रसाद के रूप में भी उन्हें भी श्रृंगार का सामान ही मिलता है।
6. वृक्ष की पत्तियों को साथ ले जाने की मनाही

Nidhivan
कहा जाता है कि जो भी भक्त दिन में यहां घूमने आते हैं, वे इन वृक्षों की पत्तियों को अपने साथ नहीं ले जा सकते। जो भी इसे अपने साथ ले जाता है, उसका कुछ न कुछ अहित जरूर होता है। इसलिए लोग इसे साथ ले जाने से परहेज करते हैं।
7. रास देखने वाला जिंदा नहीं बच पाता

Nidhivan Entry Gate
वृंदावन के स्थानीय पुजारियों का कहना है कि इस वन वाटिका में कोई भी भगवान की रासलीला नहीं देख सकता। जिसने भी कोशिश की वो 24 घंटे से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाया है।
8. रासलीला देखकर जान गवांने वालों की बनी हैं समाधि

Nidhivan
ऐसा कहा जाता है कि दर्शन की कोशिश करने वाले को भगवान तो दिख जाते हैं, लेकिन वो उनकी अपार ऊर्जा को देखकर सहन नहीं कर पाता। इसके कारण उसके आंखों की रोशनी चली जाती है और वो कुछ समय बाद उनकी मौत हो जाती है। जिन्होंने भगवान के दर्शन कर अपनी जान गवांयी उन सभी की समाधि इसी वन में आज भी मौजूद हैं।
9. स्वामी हरिदास देख पाते थे भगवान का रास

Nidhivan
कहा जाता है कि तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास कृष्ण भगवान और राधा की भक्ति ही करते थे। 15वीं सदी में वे यहीं रहकर भगवान की आराधना किया करते थे। उस समय वे भगवान कृष्ण के साथ गोपियों की अलौकिक रास को वह अपनी आंखों से देख पाते थे।
10. यहीं भगवान ने स्वामी हरिदास को दी थी बांके बिहारी की मूर्ति

Banke Bihari
बांके बिहारी मंदिर में स्थापित ठाकुर जी की मूर्ति स्वामी हरिदास को निधिवन में ही मिली थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने वो मूर्ति दी थी। इस मूर्ति का स्वामी हरिदास ने काफी समय तक निधिवन में ही रहकर पूजन किया। बाद में मंदिर का निर्माण कराकर उसे स्थापित कर दिया।

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