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मथुरा

होलिका दहन पर धधकती लपटों से निकलता है पंडा, इस बार यह चमत्कार करेंगे 27 वर्षीय मोनू

– सैकड़ों वर्ष पुरानी है यह परम्परा- साधना में जुट गये हैं मोनू पंडा

मथुराFeb 28, 2020 / 06:29 pm

Hariom Dwivedi

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ब्रज की होली का अपनी अनूठी परंपराओं को लेकर देश और दुनिया में अलग स्थान है

मथुरा. ब्रज की होली का अपनी अनूठी परंपराओं को लेकर देश और दुनिया में अलग स्थान है। इन्हीं में से एक है प्रह्लाद के गांव फालैन की परम्परा, जहां हर वर्ष होली पर पंडा धधकती लपटों के बीच से सकुशल निकल जाता है। सैकड़ों वर्षों से एक ही परिवार इस परम्परा को निभाता आ रहा है। इस बार यह हैरतअंगेज कारनामा करेंगे 27 वर्षीय मोनू पंडा। इसके लिए वह साधना में जुट गये हैं। प्रह्लाद मंदिर में बसंत पंचमी से ही वह तल्लीनता से आराधना में जुटे हैं। ग्रामीण भी होलिका दहन की तैयारियों में जुट गये हैं।
मथुरा के फालैन गांव मे होलिका दहन के दिन जलती हुई होलिका के बीच से पंडा के निकलने की परम्परा सैंकड़ों वर्ष पुरानी है। गांव में भक्त प्रह्लाद का मंदिर है जिसमें होली दहन से करीब सवा महीने पहले पंडा तप पर बैठ जाता है। करीब आठ बार होलिका के बीच से निकले सुशील पंडा के बेटे मोनू पंडा इस बार यह रस्म निभाएंगे। जप पर बैठे मोनू पंडा ने बताया कि उनके ही परिवार की कई पीढ़ियां इस परम्परा का निर्वहन करती चली आ रही हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऐसा केवल प्रह्लाद जी की कृपा से ही संभव हो पाता है। इस बार होली पर फालैन में 9 मार्च को मोनू पंडा जलती होलिका से निकलेंगे।
होलिका दहन पर धधकती लपटों से निकलता है पंडा, इस बार यह चमत्कार करेंगे 27 वर्षीय मोनू
माला का है प्रताप
आयोजन की तैयारी कर रहे मोनू पंडा का कहना है कि बसंत पंचमी से वह प्रह्लाद मंदिर में तप पर बैठे हैं और पूर्णिमा (होलिका दहन) तक व्रत रखकर केवल फलाहार करेंगे। पिछले वर्ष उनके चाचा बाबूलाल जलती होलिका के बीच से निकले थे। उन्होंने बताया कि धधकती होलिका की लपटों के बीच से पंडा का निकल पाना साधना और प्रह्लाद जी की उस माला का प्रताप है जो सैकड़ों वर्ष पहले कुंड से प्रकट हुई प्रह्लाद जी के गले में थी। मोनू बताते हैं कि मूर्ति के साथ स्वयं प्रकट हुई इस माला में बड़े-बड़े 7 मनका थे, बाद में मौनी बाबा ने इन्हीं सात मनका से 108 मनका की माला तैयार कराई। मोनू बताते हैं कि कई पीढ़ियां इसी माला से महीने भर जप करने और होलिका दहन के दिन प्रह्लाद कुंड में स्नान के बाद इस माला को धारण करने के बाद ही आग की लपटों के बीच से सकुशल निकल चुके हैं।

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