जिसने दूंढा उसे मिल गया। हे नाथ, मैं डरपोक किनारे बैठी रही। मुझे कुछ नहीं मिला, मीरा ने खोजा, मिल गये। जब तक ह्रदय में प्रभु को पाने की लालसा इस हद तक ना पैदा हो जाए कि उसके बिना जीना मुहाल हो, तब तक उसे या उसके प्रेम का पाने का निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए।
सन्तमत विचार प्रेम ही प्रभु का विधान है। तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो। तुम प्रेम करते हो ताकि तुम जीना सीख लो। मनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं। प्रेम करना क्या है, सिवाय इसके कि प्रेमी प्रियतम को सदा के लिए अपने अन्दर लीन कर ले, ताकि दोनों एक हो जायें।
जिन्ह प्रेम कियो, तिन्ह ही प्रभु पायो”
प्रस्तुतिः आशीष गोस्वामी
श्री बाँके बिहारी जी मंदिर, श्री धाम वृंदावन, मथुरा