भगवान जम्बूस्वामी को हुई थी निर्वाण प्राप्ति
नेशनल हाइवे—2 स्थित जम्बूस्वामी दिगम्बर जैन मंदिर, जैन समाज का प्रमुख तीर्थस्थल है। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान जम्बूस्वामी को 84 वर्ष की आयु में निर्वाण की प्राप्ति हुए थी। उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए मथुरा बृज क्षेत्र में 84 उपवन, 84 कुंडों का निर्माण कराया गया।
नेशनल हाइवे—2 स्थित जम्बूस्वामी दिगम्बर जैन मंदिर, जैन समाज का प्रमुख तीर्थस्थल है। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान जम्बूस्वामी को 84 वर्ष की आयु में निर्वाण की प्राप्ति हुए थी। उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए मथुरा बृज क्षेत्र में 84 उपवन, 84 कुंडों का निर्माण कराया गया।
211 साल पुराना है मंदिर
बताया जाता है कि ये जैन मंदिर 211 साल पुराना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रघुवंशी राजा राम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने मधुरा नामक नगरी की स्थापना की थी। बाद में इसे मथुरा नाम से जाना जाने लगा। मंदिर के सेवायत रमेश चंद जैन ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण सन् 1807 में किया गया था। यहां से जम्बूस्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। मंदिर में जिस स्थान पर उनके चरण हैं, वो सिद्ध क्षेत्र कहलाता है। उन्होंने बताया कि मंदिर में देशभर के जैन समाज के लोग आते हैं और भगवान जम्बूस्वामी के चरणों में माथा टेककर आशीर्वाद लेते हैं।
बताया जाता है कि ये जैन मंदिर 211 साल पुराना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रघुवंशी राजा राम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने मधुरा नामक नगरी की स्थापना की थी। बाद में इसे मथुरा नाम से जाना जाने लगा। मंदिर के सेवायत रमेश चंद जैन ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण सन् 1807 में किया गया था। यहां से जम्बूस्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। मंदिर में जिस स्थान पर उनके चरण हैं, वो सिद्ध क्षेत्र कहलाता है। उन्होंने बताया कि मंदिर में देशभर के जैन समाज के लोग आते हैं और भगवान जम्बूस्वामी के चरणों में माथा टेककर आशीर्वाद लेते हैं।
इस तरह की जाती है पूजा
मंदिर सुबह 6 बजे से लेकर रात 9 बजे तक खुला रहता है। यहां फूल या धूपबत्ती से पूजा नहीं होती, गोला, लौंग, सूखे चावल आदि से पूजा की जाती है। जो भी यहां पूजा करने के लिए आता है, वो पहले पूजा की सामग्री को पानी से धोता है, फिर पूजा करता है। हर साल यहां 26 जनवरी को वार्षिक रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
मंदिर सुबह 6 बजे से लेकर रात 9 बजे तक खुला रहता है। यहां फूल या धूपबत्ती से पूजा नहीं होती, गोला, लौंग, सूखे चावल आदि से पूजा की जाती है। जो भी यहां पूजा करने के लिए आता है, वो पहले पूजा की सामग्री को पानी से धोता है, फिर पूजा करता है। हर साल यहां 26 जनवरी को वार्षिक रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।