इसलिए गोकुल से नन्द गांव गए थे कृष्ण यह मंदिर 18वीं शताब्दी में भरतपुर के जाट राजा रूपसिंह द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर कृष्ण के पिता नंदराय को समर्पित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर थोड़ी सी चढ़ाई करनी पड़ती है। नंद गांव के यतेंद्र तिवारी नाम के एक व्यक्ति ने बताया कि मथुरा गोकुल के बेहद नजदीक होने के कारण कंस के राक्षस गोकुल वासियों को परेशान किया करते थे और भगवान श्री कृष्ण ने अपने कुल गुरु गर्गाचार्य से सलाह लेकर नंद गाँव जाने का विचार बनाया। गर्गाचार्य गुरु ने नंदीश्वर परिवार जाने के लिए बोला क्योंकि यहां पर शांडिल्य मुनि का श्राप था कि कोई भी राक्षस यहां आएगा वह पाषाण काल यानी पत्थर का बन जाएगा। इसी वजह से भगवान श्रीकृष्ण अपने परिवार और गोकुल वासियों को लेकर नंदीश्वर पर्वत चले गए जहां नंद बाबा ने नंद गांव बसाया। उन्होंने यह भी बताया कि कंस के जो अत्याचार थे और उसके जो राक्षस थे उसके अत्याचारों से बचने के लिए यहां नंद बाबा को लेकर भगवान श्री कृष्ण आए थे।
हाऊ वन पत्रिका की टीम ने कल गोकुल के बारे में आपको बताया था और आज हम आपको नंद गाँव के बारे में बताएंगे, जहां भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यावस्था में कई लीलाएं कीं। सबसे पहले हम आपको लेकर चलेंगे हाऊ-बिलाऊ इस जगह को हाऊ वन भी कहा जाता है यहाँ हम महाराज उद्धव दास से मिले और उनसे हाऊ -बिलाऊ के बारे में जाना। उद्धव दास महाराज का कहना है कि नंद महल से माता यशोदा स्नान करने के लिए यहां आती थीं और कन्हा जब छोटे थे तो कान्हा को साथ लेकर आती थीं। कंस के जो राक्षस है उन्हें शांडिल्य मुनि का श्राप था कि जो भी नंद गाँव की सीमा के अंदर आ जाएगा वह पत्थर का बन जाएगा। इसी वजह से जो राक्षस आते थे वह भगवान श्रीकृष्ण को यहां आकर डराते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने जितने भी राक्षसों के वध किए वह नंद गांव से बाहर किए जो भी राक्षस नंद गांव में प्रवेश कर गया वह पत्थर का बन गया था। हाऊ बिलाऊ कंस के असुर हैं।
औरंगजेब ने किया खंडित महाराज उद्धव दास का यह भी कहना है कि जब औरंगजेब का तब जितनी भी पौराणिक चीजें थीं उन्हें औरंगजेब खंडित कर देता था। औरंगजेब के द्वारा हाऊ बिलाऊ को यहां से ले जाने का प्रयास भी किया गया लेकिन हाऊ बिलाऊ यहां से नहीं जा पाएं। इसी वजह से औरंगजेब ने इनको खंडित कर दिया। बाहर से जो लोग यहां आते हैं वह इनको देखने के लिए आते हैं।
यशोदा कुंड यहां से थोड़ा सा आगे चलेंगे तो आपको एक कुंड दिखाई देगा इस कुंड को यशोदा कुंड के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार मां यशोदा जब स्नान करने के लिए नंद महल से आती थीं तो वह इसी कुंड में स्नान किया करती थीं। यशोदा कुंड के पास मां यशोदा और बाल्यावस्था के भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा यहां विराजमान है साथ ही यहां हनुमान जी भी विराजमान हैं जोकि ग्वाला रूप में यहां भक्तों को दर्शन देते हैं। यशोदा मंदिर और हनुमान मंदिर दोनों ही एक दूसरे के पास हैं।
दही मांट
यशोदा कुंज से थोड़ा सा आगे चलेंगे तकरीबन डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर आपको गांव के अंदर दही मांट देखने को मिलेगा। दही मांट के बारे में जानकारी देते हुए शिव कुमार गोस्वामी ने बताया कि यह जो मांट है माता यशोदा का है। इस मांट की गहराई 7 फीट के करीब है और ऐसा कहा जाता है कि मां यशोदा इसी मांट में दूध और दही रखा करती थीं। माता यशोदा के पास ऐसे 7 मांट थे जिनमें से 6 को भगवान श्री कृष्ण ने माखन मिश्री प्राप्त करने के लिए तोड़ दिया था और यह बचा हुआ सातवां माट है जोकि आज तक माता यशोदा की निशानी के रूप में यहां बचा कर रखा गया है।
गाय के खूंटे माता यशोदा के दही मांट के दर्शन के बाद हम आगे की ओर बढ़ लिए तकरीबन 500 मीटर की दूरी पर नंद भवन के तीसरे रास्ते पर स्थित हैं दो गाय के खूंटे। मान्यता के अनुसार नंद बाबा की जो 84 लाख गाय थीं। वह इन 2 खूंटों से बंधा करती थीं। तब से लेकर आज तक यह खूंटे आज भी नंद गांव में निशानी के तौर पर मौजूद हैं। कहा यह भी जाता है कि नंद बाबा ने दो लाख गायों को ब्रज वासियों को दान भी दिया था।
चरण पहाड़ी
गाय के खूंटों से थोड़ा सा आगे करीब 1 किलोमीटर कामा रोड की तरफ चलेंगे तो लेफ्ट हैंड पर चरण पहाड़ी के दर्शन आपको करने को मिलेंगे। चरण पहाड़ी के बारे में जब हमने यहां की पुजारी से बात की तो पुजारी ने बताया यह जो पहाड़ी है नंदेश्वर पर्वत के नाम से भी जानी जाती है। मान्यता के अनुसार यहां जब भगवान श्री कृष्ण मधुमंगल के साथ गाय चराने के लिए आए थे तो भगवान शंकर पहाड़ के रूप में लेटे हुए थे और भगवान श्री कृष्ण ने अपने गाय और बछड़ा को बुलाने के लिए यहीं बांसुरी बजाई और जिस जगह भगवान श्री कृष्ण खड़े हुए थे वह शंकर भगवान का सिर था। माथे पर खड़े होकर भगवान श्री कृष्ण बांसुरी बजा रहे थे तो उनके माथे पर एक अंगूठा एक पैर और लाठी का निशान आज भी देखने को मिलता है।
कैसे पहुंचें 1- वायु मार्ग नंदगांव का नजदीकी हवाई अड्डा आगरा विमान क्षेत्र और दिल्ली विमान क्षेत्र है। दिल्ली और आगरा से मथुरा तक के लिए लगातार प्राईवेट और सरकारी बस सेवा है। अपने निजी वाहन के जरिए भी नंदगांव तक पहुंचा जा सकता है।
2- रेल मार्ग निकट ही मथुरा पश्चिम केन्द्रीय रेलवे की मुख्य बड़ी लाइन पर है। यह स्टेशन रेल द्वारा भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। 3- सड़क मार्ग नंदगांव मथुरा, गोवर्धन, बरसाना और कोसीकलां से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। कोसी दिल्ली से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। आप कोसी, मथुरा,भरतपुर,गोवर्धन, होकर भी नंदगांव पहुंच सकते हैं। वैसे मथुरा से नंदगाव तक जाने के लिए उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और उत्तर प्रदेश रोडवेज की सीधी बस सुविधा भी उपलब्ध है।