वृन्दावन के कुम्हारपाड़ा मोहल्ला के अधिकांश परिवार दीपावली के त्योहार में कमाई की उम्मीद के साथ मिट्टी के दीपक बनाने का काम तेजी से कर रहे हैं। सामान्य दीपक से लेकर तमाम तरह के डिजाइनें बना रहे ये कुंभकार पूरे मनोयोग से इस काम में जुटे हुए हैं। पहले मिट्टी लाना, फिर उसे कूटना, छानना, पानी में गलाना और उसके बाद चाक पर रखकर मिट्टी के दीए बनाना।
कई पीढ़ी से दीपक बना रहे धांधूराम प्रजापति इस बारें में कहते हैं कि पहले मिट्टी फ्री मिलती थी, लेकिन अब खरीदनी पड़ रही है। मायावती सरकार में पट्टे हुए थे, मगर अब उनमें मिट्टी नहीं है। सामान्यत: मिट्टी खरीदकर दीए बनाने से कोई विशेष मुनाफा नहीं हो पाता। केवल त्योहारों पर ही मुनाफे की उम्मीद होती है। उस पर भी प्लास्टिक की चीजों और सामान ने ग्रहण लगा दिया है। उनका कहना है कि प्लास्टिक के चलन ने उनके पारम्परिक रोजगार को खत्म कर दिया है। सरकार से मांग करते हुए धांधूराम कहते हैं कि मिट्टी के लिए उन्हें खदान आवंटित करायी जाए।
वहीं नवलकिशोर कुम्भकार ने बताया का कहना है कि इतने साल इस काम में देने के बाद हमारे पास कुछ और करने का विकल्प नहीं रहता। दीपक बनाने के लिए मिट्टी को खोदकर बहुत दूर से लाना पड़ता है। इसके बाद तैयार दीपक को पकाने के लिए लकड़ी की लागत भी काफी बढ़ गई। वहीं चाइनीज और प्लास्टिक के आइटम ने हमारी बिक्री में सेंध लगा दी है। सरकार इन पर रोक लगाए तब हमारा सामान बिकेगा।
इन सभी कुंभकारों की गुजारिश है कि प्रधानमंत्री की अपील को ध्यान में रखें और इस साल दीपों का त्योहार मिट्टी के दीपक जलाकर ही मनाएं। ताकि वे भी अपनी रोजी रोटी चलाकर त्योहार को मना सकें।