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मथुरा

साउथ कोरिया की सैमसंग जैसी हजारों कंपनियों को भारत से बुलावे का इंतजार

-नोएडा में एक साल के अंदर बनी बिल्डिंग सियोल में चार माह में बन जाती
-इलेक्ट्रॉनिक समेत कई तकनीक में दुनिया में अग्रणी बना साउथ कोरिया
-सेचुरेटेड हुए दक्षिण कोरिया की कंपनियों की नजर अब इंडिया पर

मथुराJul 11, 2018 / 01:13 pm

Bhanu Pratap

South Korea

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मथुरा। दक्षिण कोरिया की कंपनी सैमसंग की नोएडा (उत्तर प्रदेश) के सेक्टर 16 में जिस मेन्यूफैक्चर इकाई में सोमवार से मोबाइल उत्पादन प्रारंभ हुआ है, उसकी बिल्डिंग रिकॉर्ड एक साल के अंदर तैयार हुई है। कम समय में बड़ी फैक्ट्री की इमारत के निर्माण को भारत में एक उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन दक्षिण कोरिया के आर्कीटेक्ट इसके निर्माण अवधि से नाखुश हो सकते हैं। फैक्ट्री की यही इमारत यदि दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में बनी होती तो चार माह के अंदर तैयार हो जाती।
तकनीक के सहारे प्रगति

ये एक ऐसी सामयिक नजीर है जिसे पता चलता है कि तीन ओर समुद्र व छोटे टापुओं से घिरे दक्षिण कोरिया ने हर प्रकार की तकनीक के मामले में दूसरे देशों से बढ़त बना ली है। लगभग 60 वर्ष पहले आजाद हुए इस देश ने अपनी तकनीक के सहारे जो प्रगति की है, उससे ये देश सेचुरेटेड स्थिति में जा पहुंचा है।
अगली पीढ़ी को कुछ भी नया करने को बचा नहीं

राजधानी सियोल में एक मुलाकात में डेबू मोटर की कंपनी डीएसएमई के टेक्नालाजी स्ट्रेटजी डिपार्टमेंट के एसोसिएट योंग हो चो ने बताया कि दक्षिण कोरिया में अगली पीढ़ी को कुछ भी नया करने को बचा नहीं है। इसीलिए हम अपनी तकनीक भारत जैसे विकासशील देश में ले जाना चाहते हैं। अकेले सौमसंग ही नहीं, न जाने कितनी ऐसी कंपनी हैं जो भारत से बुलावे के इंतजार में बैठी हैं।
कोरियाई कंपनी सिर्फ तकनीक ले जाना चाहती हैं

वर्ल्ड वेस्ट टैक कंपनी के चेयरमैन केके किम कहते हैं कि चीन और कोरिया की कंपनियों के काम करने में एक बुनियादी फर्क है। चीन की कंपनी भारत में पूरी तरह जमने को पहुंचना चाह रही हैं लेकिन कोरियाई कंपनी सिर्फ अपनी तकनीक ले जाना चाहती हैं।
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कोल्ड चेन सिस्टम

साउथ कोरिया ने गैस वेस्ट पावर जेनरेट व कोल्ड चेन सिस्टम शुरू किया है। इसका पेटेंट सियोल की बेस्ट टैक कंपनी के पास है। इस कंपनी के सीईओ क्युके किम कहते हैं कि इस नई तकनीक से जो कोल्ड स्टोरेज बन रहे हैं, उनमें माइनस 55 पर कूलिंग कर झींगा मछली को सुरक्षित रखा जा रहा है। फल, सब्जी, दूध, मशरूम के लिए माइनस वन से टेन तक कूलिंग संभव है। साथ ही पावर जेनरेट भी हो रहा है। इस नई तकनीक से सियोल से 400 किमी दूर बुसान के निकट समुद्र किनारे कोल्ड कांपलेक्स बन चुका है, जबकि उत्तर कोरिया सीमा के समीप प्योंगटेक शहर के पास इससे भी ज्यादा उच्च तकनीक का कोल्ड कांप्लेक्स युजिन कंपनी तैयार कर रही है।
पनडुब्बी और शिप निर्माण के लिए यूएसए तक निर्भर

पनडुब्बी और शिप (पानी के जहाज) निर्माण की तकनीक में भी दक्षिण कोरिया पर अमेरिका, ब्रिटेन, चीन व जापान जैसे देश उन्नत देश निर्भर हैं। समुद्र से घिरे जियोजी सिटी के पास डेबू मोटर की ही डीएसएमई कंपनी अमेरिका, फ्रांस के लिए पनडुब्बी व सबसे बड़ा शिप बना रही थीं। हुंडई भी दुनिया के तमाम देशों के शिप बनाती मिलीं। अपने पहले दौरे में पीएम नरेंद्र मोदी को वहां के राष्ट्रपति मून जे इन ने जियोदी सिटी का भ्रमण कराया। कोरियन बुलेट ट्रेन 500 किमी स्पीड से दौड़ती है। बुसान टापू के लिए समुद्र में 500 मीटर नीचे पानी में से रास्ता निकाला है।
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कूड़े से पार्क बनाया और बिजली पैदा की

एक अरब से ज्यादा आबादी वाले नीट एंड क्लीन सिटी सियोल में तमाम हैरतअंगेज चीजें देखने को मिलीं। दस वर्ष पूर्व शहर के वेस्ट (कूड़े) का टापू हन नदी के किनारे बनाया गया। फिर उसे हरा भरा कर पार्क बना दिया। पार्क को पाट कर अंदर पाइप से पानी उड़ेल पहले गैस बनायी फिर उसी से बिजली बना रहे हैं। इसके अलावा हन नदी के पानी से पनबिजली और हवा से भी बिजली बन रही है। समुद्र के पानी को मीठा व पीने योग्य बना लिया है। ज्यादातर बड़ी कंपनियों की छत पर हैलीपेड हैं। सियोल की तमाम कंपनियां अपने कारोबार की संभावनाएं इंडिया में देख रही हैं।
छह माह में बनाया गैगनम फाइनेंस टॉवर

इन्वेस्टर्स समिट में भाग लेने लखनऊ व बाद में मथुरा आए डॉ. अहन का नाम गिनीज बुक में दर्ज है। डॉ. अहन ने सियोल की कई ऊंचे टावर तैयार किये है। 40 मंजिल की गैगनम फाइनेंस बिल्डिंग को डॉ. अहन ने रिकॉर्ड छह माह में तैयार कराया। निर्माण के क्षेत्र में ये एक विश्व रिकॉर्ड था। इसीलिए उन्हें ये पुरस्कार मिला।
CP singh sikarwar
निर्माण की नई कोरियन तकनीक

साउथ कोरिया ने अपने यहां बिल्डिंग निर्माण के लिए नई तकनीक ईजाद की है। नीचे दस मंजिला पार्किंग और ऊपर पचास मंजिल की इमारत बनानी हो तो स्टील के बड़े पिलर खड़े कर एक के ऊपर कस दिये जाते हैं। बाद में रेडीमेड स्टील व विशेष धातु की मोटी प्लेट छत का काम करती हैं। उन प्लेटों को छत व दीवार पर कसते हुए एक-एक मंजिल बनाते चलते हैं। ऊपर से और नीचे से दोनों ओर से बिल्डिंग बनती चली जाती है। जो टॉवर इंडिया में पांच साल में बनेगा, उसे देखते देखते छह माह में खड़ा कर दिया जाता है। सीमेंट की बिल्डिंग की तुलना में ये तकनीक ज्यादा कारगर, टिकाऊ और भूकंपरोधी साबित हो रही है।
(दक्षिण कोरिया के दौरे से लौटे वरिष्ठ पत्रकार सीपी सिंह सिकरवार ने जैसा बताया)

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