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मथुरा

किस्से चिट्ठी के… लोग बेसब्री से करते थे चिट्ठी का इंतजार, दरवाजा खटकते ही समझ जाते थे डाकिया आया है…

मथुरा के मेयर मुकेश आर्य बंधु से जानिए चिट्ठी के दौर के रोचक किस्से।

मथुराDec 05, 2019 / 12:02 pm

suchita mishra

Letter Writing Day

Letter Writing Day

मथुरा। एक जमाना था, जब गली में डाकिया किसी के घर का दरवाजा खटखटाकर चिट्ठी देता था तो पड़ोस के दूसरे लोग बाहर निकलकर पूछते थे, भैया क्या हमारी चिट्ठी भी आयी है…क्योंकि अपनों के हाल चाल जानने का एक मात्र माध्यम पत्र ही था। लोग बेसब्री से चिट्ठी का इंतजार करते थे। डाकिए का एक निश्चित समय होता था और उस दौरान दरवाजा खटकते ही लोग समझ जाते थे कि कोई खत आया है।
देखा जाए तो वो गलियां और वहां रहने वाले लोग अब भी हैं, डाकिए भी हैं और पोस्ट ऑफिस भी है, लेकिन अगर कुछ नहीं है तो वो हैं चिट्ठियां..क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया ने चिट्ठियों को गुजरे जमाने की बात बना दिया और उनका चलन लगभग खत्म सा हो गया। आलम ये है कि आज की पीढ़ी से यदि चिट्ठियों का जिक्र किया जाए तो वे हैरान हो जाते हैं। 7 दिसंबर को letter writing day है। इस मौके पर पत्रिका की विशेष सीरीज ‘किस्से चिट्ठी के’ में हम बात करेंगे मथुरा के मेयर मुकेश आर्य बंधु से और जानेंगे चिट्ठी के दौर की रोचक बातें। ताकि आज की पीढ़ी भी चिट्ठी के जमाने को एक खूबसूरत इतिहास के रूप में याद कर सके।
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अंतर्देशीय पत्र में लोग उड़ेल कर रख देते थे भावनाएं
चिट्ठी के रोचक किस्सों को साझा करते हुए मथुरा शहर के महापौर मुकेश आर्य बंधु बताते हैं कि चिट्ठियों का जमाना मैंने बड़े नजदीक से देखा है। उस समय एक अंतर्देशीय पत्र आता था। जो करीब दो पेज का होता था। अंतर्देशीय पत्र लिखते समय लोग अपनी भावनाएं मानों उड़ेल कर रख देते थे। एक पोस्टकार्ड भी आता था, उसके माध्यम से भी अपनी बात कहा करते थे। पत्र लिखने के बाद लोग अक्सर एक बात लिखा करते थे, ‘थोड़े लिखे को बहुत समझना, आगे आप खुद समझदार हैं।’ इसको पढ़ने वाला समझ लेता था कि जहां से चिट्ठी आई है, उसने किस मुद्दे पर लिख कर भेजा है।
इमरजेंसी में भेजा जाता था तार
अगर कोई इमरजेंसी होती थी तो तार के माध्यम से सूचना भेजते थे। डाकिया भी तार पहुंचाने में देरी नहीं करते थे। वो एक ऐसा समय था जब एक डाकिया लंबे समय तक एक ही क्षेत्र में काम करता था। घरों में उसके रिश्ते पारिवारिक से हो जाते थे। घर घर जाकर जब वो घंटी बजाता था तो लोग घंटी की आवाज सुनते ही समझ जाते थे कि डाकिया आया होगा क्योंकि डाकिया का एक समय निश्चित होता था।
टेलीफोन अमीरों की निशानी था
मेयर बताते हैं कि चिट्ठी के जमाने में टेलीफोन बहुत बड़ी बात होती थी। टेलीफोन बहुत कम घरों में होता था। आमतौर पर लखपति और करोड़पतियों के घर लैंडलाइन होते थे। मेयर आगे बताते हैं कि उस जमाने में पत्र देखकर लोग समझ जाते थे, कि इसमें क्या लिखा है। जब कोई बुरी सूचना होती थी तो आमतौर पर पोस्टकार्ड पर लिखी जाती थी और उसका कोना फाड़ दिया जाता था। कोना फटा देखते ही लोग समझ लेते थे कि कोई अशुभ सूचना है।
तीन तरह के होते थे पत्र
मेयर बताते हैं कि उन्होंने अपने समय में तीन तरह के पत्र देखे हैं। पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और लिफाफा। पोस्टकार्ड में कभी कोई गोपनीय सूचना नहीं लिखी जाती थी। अंतर्देशीय पत्र चार फोल्ड वाला होता था। उसमें गोपनीय सूचना लिखी जाती थी। अगर अंतर्देशीय पत्र किसी व्यक्ति विशेष को लिखा जाता था तो उसमें सबसे उपर उस व्यक्ति का नाम लिखा जाता था। साथ में लिखा होता था, कृपया इस पत्र को वही व्यक्ति खोले जिसका नाम लिखा है और वो पत्र डाकिया उसी व्यक्ति को देता था। इस तरह लोग कई बार प्रेम पत्र भी भेजा करते थे। इसके अलावा एक बंद लिफाफा होता था, उसे राखियां वगैरह भेजने के लिए प्रयोग किया जाता था।
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