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मथुरा

स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सेवाएं उपलब्ध कराने में 21 राज्यों में यूं ही नहीं है यूपी अंतिम पायदान पर!

-जनपद में आयुर्वेदिक चिकित्सालयों की संख्या 35, चिकित्सकों की संख्या मात्र 14-अधिकारी ने कैमरे के आगे कबूला, मरीज आएं या न आएं आंकड़े पूरे करने होते हैं-चिकित्सकों की कमी के चलते चतुर्थश्रेणी कर्मचारी जो मन आये वह दे रहे दवा-दवाओं को खुले बाजार में बेच रहे अधिकारी, दर दर भटक रहे मरीज

मथुराJun 26, 2019 / 07:03 pm

अमित शर्मा

मथुरा। आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सेवाएं उपलब्ध कराने में पहले से ज्यादा फिसड्डी साबित हुआ। नीति आयोग ( Planning Commission ) की हेल्थ रिपोर्ट में 21 बड़े राज्यों की सूची में यूपी को 21वां स्थान मिला है। पिछली बार भी यूपी सबसे अंतिम पायदान पर था। राज्य की खराब स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक साल पहले यूपी का कंपोजिट इंडेक्स स्कोर 33.69 था, जो अब 5.28 अंक घटकर 28.61 रह गया है। हम आपको आवगत कर रहे हैं। कान्हा की नगरी में स्वास्थ्य सेवाओं की बदतर जमीनी हकीकत से…
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अयुर्वेदिक, यूनानी पद्धतिः चिकित्सालय 35, चिकित्सक 14
जनपद में भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद औ यूनानी पद्धति के 35 चिकित्सालय हैं। इनमें से आधे से अधिक चिकित्सालय सामान्य दिनों में भी बंद रहते हैं। इसकी वजह यह है कि यहां 35 चिकित्सालयों पर मात्र 14 चिकित्सक तैनात हैं। चिकित्सक की अनुपस्थिति में यहां तैनात चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मरीजों को जो मर्जी आये वही दवा दे देता है। अब यह मरीज की किस्मत है कि वह मरे या बचे। इतना ही नहीं जो चिकित्सक हैं वह भी समय से चिकित्सालय नहीं पहुंचते। सरकार ने भी हद कर दी है। सरकारी नियमानुसार दोपहर दो बजे ही ये अस्पताल बंद हो जाते हैं। अब सरकार ही यह बेहतर जानती है कि दो बजे चिकित्सालय बंद करने का क्या औचित्य है। गरीब मजदूर सुबह जल्दी काम पर चले जाते हैं और शाम को लौटते हैं। चिकित्सक चिकत्सालय पर ही क्यों नहीं रूकते, इनके रूकने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई। जिलास्तरीय चिकित्सालय में 10 बैड होने चाहिए, हैं सिर्फ तीन और वह भी इस हालत में हैं कि कोई इन पर लेट जाए तो जरूर बीमार हो जाएगा।
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एलोपैथीः न चिकित्सक न चिकित्सा, सिर्फ जरूरी कागज बनवाने के काम आ रहे सरकारी चिकित्सालय
महिला जिला चिकत्साय में रात के समय कोई चिकत्सक नहीं रूकता है। अगर रात के समय प्रसूता को किसी तरह की कोई दिक्कत हो जाए तो तीमारदार और प्रसूता को सुबह होने तक का इंतजार करना पड़ता है। चिकत्सक फिर भी 10 बजे से पहले नहीं पहुंचते।

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जिला चिकित्सालय में चालू नहीं है ट्रॉमा सेंटर
-काफी पुराना और बेहद छोटा है ऑपरेशन थियेटर, हर बार की जाती है अपग्रेड करने की बात
-प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर उपलब्ध दवाओं के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि अधिकाश दवाएं ऑर्डर देने बावजूद उपलब्ध नहीं हो रही हैं। -ब्लड बैंक में प्रभारी डॉ. ऋतु रंजन से मौजूदा रक्तकोष के बारे में पूछा और ब्लड सेप्रेशन कक्ष में खराब पड़ी मशीन की जानकारी ली।
-उसके बाद सीधे एक्सरे और अल्ट्रासाउंड विभाग का हाल जाना तो -एक्सरे मशीन 35 साल पुरानी है, इसकी जगह डिजिटल एक्सरे मिल जाए तो बेहतर होगा।
-एक्सरे और अल्ट्रा साउण्ड के लिए मरीजों को दिया जा रहा है एक से दो महीने आगे की तारीख
-एक्सरे और अल्ट्रा साउण्ड टेक्नीशियन के पद हैं खाली
-महिला जिला अस्पताल में रात के समय नहीं रहतीं चिकित्सक
-रात के समय अगर आपरेषन की जरूरत पड जाए तो कोई व्यवस्था नहीं है
-चिकित्सालय में लगे सीसीटीवी कैमरे लम्बे समय से खराब पड़े हैं
-महिला जिला चिकत्सलय में रात के समय नहीं रूकता कोई चिकित्सक

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