घोसी लोकसभा सीट, जानिये मुख्तार अंसारी के गढ़ में किसके पक्ष में हैं जातीय समीकरण
तकरीबन 16 लाख वोटों में अकेले करीब 9 लाख वोट दलिम, मुस्लिम और यादवों के हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में रिकॉर्ड वोटों से जीते बीजेपी के हरिनारायण राजभर।
इस बार सपा-बसपा गठबंधन कर मैदान में खुद को सबसे मजबूत बता रहे हैं।
मऊ. 2019 के लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजते ही पार्टियां और उनके नेता चुनावी जीत का समीकरण साधने में जुट गए हैं। इस चुनाव उततर प्रदेश के पूर्वांचल की घोसी लोकसभा सीट पर लड़ाई दिलचस्प होने वाली है। सपा-बसपा यहां गठबंधन कर मैदान में बीजेपी के खिलाफ उतर रहे हैं, तो खुद को दावेदार बनाकर तीसरा बड़ा नाम कांग्रेस का सामने आ गया है। गठबंधन को यहां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी है, जबकि कांग्रेस के सामने चुनौती खुद को लड़ाई में लाने की है। रही बात बीजेपी की तो सिटिंग लोकसभा सीट होने के चलते उस पर यहां दोबारा जीत का बेहद दबाव है। कभी वामपंथ क गढ़ रहे इस सीट पर बाद में कांग्रेस का कब्जा हो गया, लेकिन पिछले चार लोकसभा चुनावों से दोनों दलों की हालत यहां बद से बद्तर हो चुकी है।
छह बार कांग्रेस और पांच बार जीती कम्युनिस्ट पार्टी घोसी लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां कभी वामपंथ और कांग्रेस कितने मजबूत हुआ करते थे। कांग्रेस सीट पर छह बार लोकसभा चुनाव जीती, जबकि वाम दल कम्युनिस्ट पार्टी ने पांच बार घोसी लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। दिग्गज नेता कल्पनाथ राय कांग्रेस के टिकट पर दो बार जीते। हालांकि उनकी जीत अपनी छवि के चलते हुई ऐसा भी कहा जाता हे। 1952 में देश के पहले आम चुनाव में घोसी से कांग्रेस के टिकट पर देश की आजादी के लिये कई बार जेल जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अलगू राय शास्त्री जीते थे।
2014 की मोदी लहर में कितना टिका था विपक्ष लोकसभा का 2014 का चुनाव बीजेपी ने मोदी लहर पर सवार होकर जीता। घोसी लोकसभा सीट से उस समय कुल 18 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे, जिसमें सबसे कम ज्यादा 379797 वोट पाकर बीजेपी के हरिनारायण राजभर जीते थे जबकि नैतिक पार्टी के प्रत्याशी हरिनाथ को मिला था 1787 वोट।
2014 में घोसी लोकसभा सीट का रिजल्ट
भाजपा के हरीनारायण राजभर- 3, 79, 797
सपा के राजीव कुमार राय 1, 65, 887
बसपा के दारा सिहं चौहान 2, 33, 782
कांग्रेस के राष्ट्रकुवर सिहं 19, 315
कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी 1, 66, 369
सीपीआई के अतुल कुमार अन्जान- 18, 162
2019 में कौन होगा घोसी का बॉस घोसी लोकसभा सीट पर छह बार कांग्रेस, पांच बार वाम दल, दो बार बसपा और एक बार समाजवादी पार्टी जीत चुके थे। 2014 में पहली बार बीजेपी ने भी यहां से खाता खोल दिया। यहां के जातीय समीकरण की बुनावट को सपा-बसपा की राजनीति के अनुकूल कहा जाता है। यही वजह है कि कांग्रेस और वामपंथ के हाथ से निकलकर सीट इनके पास चली गयी। पर मोदी लहर में जातीय गणित काम नहीं आया। सपा-बसपा को लगा कि उनके वोट बिखरने का फायदा बीजेपी ने उठाया, इसलिये इस बार दोनों ने गठबंधन कर लिया। 2014 में सपा-बसपा और कौएद (बसपा में विलय हो चुका है) को मिले वोटों को जोड़कर गठबंधन अपनी जीत का दावा कर रहा है। बीजेपी को भी इसका आभास है, इसलिये वह अपनी गुप्त रणनीति पर काम कर रही है। हालांकि गठबंधन की मुश्किल बढ़ाने के लिये कांग्रेस ने यहां से बालकृष्ण चौहान को टिकट दे दिया है। सीट बसपा के खाते मं है और मायावती ने अतुल राय को प्रभारी जरूर घोषित किया है, लेकिन उनके नाम पर मुहर अब तक नहीं लगी है।
घोसी लोक सभा सीट का जातीय समीकरण…घोसी लोकसभा सीट पर दलित वोटर सबसे अधिक हैं। इसके बाद मुस्लिम और फिर यादव और अन्य जातियों का नम्बर आता है।
कुल मतादाता- 15, 93, 008
2014 में मतदाता- 10, 30, 740
दलित- 4, 50, 000
राजपूत- 68, 000
विश्वकर्मा- 35, 500
मुस्लिम- 2, 42, 000
वैश्य- 77, 000
भूमिहार- 35, 000
यादव- 1, 75, 000
मौर्या-39, 500
प्रजापति- 29, 000
चौहान- 1, 45, 000
ब्राम्हण- 58, 000
राजभर- 1, 25, 000
निषाद- 37, 000
नोट- सभी आंकड़े अनुमानित
घोसी लोकसभा की 5 विधानसभाओं में से 3 पर BJP का कब्जा आजमगढ़ मंडल की घोसी लोकसभा सीट के अन्तर्गत चार विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से एक रसड़ा बलिया जिले में पड़ती है। मुहम्मदाबाद गोहना में श्रीराम सोनकर, घोसी में फागू चौहान व मधुबन विधानसभा में भाजपा के दारा सिंह चौहान विधायक हैं। इसके अलाव मऊ सदर पर मुख्तार अंसारी व रसड़ा सीट पर बसपा के उमाशंकर सिंह विधायक हैं। 2014 की मोदी लहर में सीट पर हरिनारायण राजभर लोकसभा चुनाव जीते।
क्या हैं चुनावी मुद्दे बेरोजगारी, बन्द पडी सूता मिला, कटान मिल को चालू कराना, व्यापार में दशको से बाधा बनी जिले के बीच बाल निकेतन रेलवे क्रासिंग पर अन्डर ब्रिज या ओवर ब्रिज। जिले में आईआईटी या उच्च शिक्षण संस्थान। युवाओ का पलायन रोकना, जनपद में रोजगार का सृजन करना । बुनकरों को सहूलियते देना। जनपद से लम्बी दूरी की ट्रेनो का संचालन प्रमुख चुनावी मुद्दे है।
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