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मेरठ की इस हवेली में हो रही बड़ी फिल्म की शूटिंग, डायरेक्टर को इसलिए पसंद आयी यह लोकेशन 1955 में मेरठ कालेेज के हिन्दी प्रवक्ता रहे गोपाल दास नीरज ने 1943 में मेरठ में कवि सम्मेलन में हिस्सा लिया था। उसके बाद से उनका मेरठ में लगातार आना जाना लगा रहा। यहां के प्रतिष्ठित लोगों से उनका जुड़ाव इस तरह का रहा कि 1955 में उन्हें मेरठ कालेज में हिन्दी प्रवक्तता पद पर नौकरी मिल गर्इ थी। बताते हैं कि वह कक्षा में बच्चों को पढ़ाते आैर फिर सारा वक्त अपनी रचनाआें में लगाते थे। काॅलेज की राजनीति इस कदर हावी थी कि उन पर कक्षा में बच्चों के साथ खराब व्यवहार आैर थप्पड़ मारने तक के आरोप लगे, लेकिन इन आराेपों को लगाने वाले सामने कभी नहीं आए। यही वजह रही कि उन्होंने कुछ ही समय में दुखी मन से नौकरी छोड़ दी थी।
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आरजी डिग्री कॉलेज की कैंटीन पर फूड विभाग की छापेमारी हमेशा जिक्र करते थे मेरठ का इसके बावजूद महाकवि गोपाल दास नीरज का मेरठ से लगाव कभी कम नहीं हुआ। वह कवि सम्मेलनों व अन्य मौकों पर 25 से ज्यादा बार आए आैर अपनी रचनाआें से लोगों का दिल जीतते रहे। कर्इ बार उनसे हुर्इ बातचीत में वह मेरठ में बिताए पुराने दिनों के बारे में भी बताते थे। शायर पाॅपुलर मेरठी ने कवि आैर गीतकार गोपाल दास नीरज के निधन पर दुख जतातेे हुए कहा कि नीरज जी के निधन से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। वह बड़े कवि थे आैर उभरते कवियों का मार्गदर्शन करते थे। वह बहुत अच्छे इंसान थे आैर उनकी कमी हमेशा खलेगी। कवि सुमनेश सुमन ने कहा कि नीरज जी का मेरठ से गहरा नाता था। वह कर्इ बार मेरठ आए आैर उनसे मुलाकात आैर बात करने का मौका मिला था।