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‘भारत छाेड़ो आंदाेलन’ के इस योद्धा ने बताया- क्यों गांधी जी के अनुसरण की जरूरत है एेसे दिन थे आजादी से पहले स्वतंत्रता सेनानी धर्म दिवाकर बताते हैं कि आजादी से पहले प्रभात फेरी में लोगों में इन पक्तियों से जोश भरा जाता था- ‘उठ जा मुसाफिर भोर भयी, अब रैन कहां जो सोवत है, जो सोवत है वो खोवत है, जो जागत है वो पावत है।’ उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी जी के आह्वान पर शहर-शहर आैर गांव-गांव घर-घर चरखा चलता था आैर ज्यादातर खादी आैर सूत का काम होता था। उन्होंने बताया कि जब देश को आजादी मिली थी तो उस दिन हर घर में तिरंगा लगाया गया था। 15 अगस्त 1947 को सुबह गांधी आश्रम से प्रभात फेरी निकली थी, जो पीएल शर्मा स्मारक पर सम्पन्न हुर्इ। इसके बाद पीएल शर्मा स्मारक, स्कूल-कालेजों में देशभक्ति आैर सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए थे।
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नवाब इस शहर लेकर पहुंचे थे महात्मा गांधी की अस्थियां, ये बात नहीं जानते होंगे आप भारत छोड़ो आंदोलन से हुए थे प्रभावित धर्म दिवाकर का जन्म बिजनौर में 1932 में हुआ था। वह अपने माता-पिता के साथ मेरठ में 1940 में आ गए थे। मात्र दस साल की उम्र में ही वह महात्मा गांधी के विचारों से जुड़ गए थे आैर 1942 में गांधी जी के ‘भारत छोड़ाे आंदोलन’ से इस कदर प्रभावित हुए कि गांधी जी की हर बात को बेहद ध्यान से सुनना आैर उसका अनुसरण करना उनकी आदत में शुमार हो गया था। भारत को जब आजादी मिली तो वह 15 साल के थे। गांधी जी के विचारों से धर्म दिवाकर एेसे जुड़े कि उम्रभर उनका अनुसरण किया। उन्होंने गांधी जी पर किताब ‘इतिहास बोलता है, गांधी चुप नहीं रहेगा’ लिखी, जिसे काफी प्रसिद्धि मिली। स्वतंत्रता सेनानी धर्म दिवाकर का कहना है कि आज की पीढ़ी को पाश्चात्य सभ्यता की आेर भागने की जरूरत नहीं। अपनी संस्कृति में रहते हुए भविष्य के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है।