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मेरठ

हरियाली का सचः पिछले दस साल में यहां इतने वन काटे गए, सुनकर होश खो बैठेंगे

पत्रिका सरोकार

मेरठJul 05, 2018 / 03:17 pm

sanjay sharma

meerut

हरियाली का सचः पिछले दस साल में यहां इतने वन काटे गए, सुनकर होश खो बैठेंगे

मेरठ। बरसात का मौसम आते ही वेस्ट यूपी में पौधरोपण अभियान की बाढ़ आ जाती है, लेकिन यह अभियान मात्र बरसात के समय तक ही सीमित होकर रह जाता है। जंगलों को पनपने में सदियां लग जाती हैं किंतु जंगल काटने वाले उसे चंद दिनों में ही काट डालते हैं। जंगल चुपचाप कट जाता है। पहले जंगलों के प्रति आदमी के मन में आस्था रहती थी। वह जंगल के बीच जंगली बने रहकर भी जंगल का अमंगल करने की सोचता तक नहीं था। वह सदियों से इस तथ्य को जानता है कि जंगल भी जलचक्र के नियंता हैं। पौधे अपने आप से पानी पीते हैं और सूर्य ताप उन्हें पनपाता है। जंगलों से आदमी क्या कुछ नहीं पाता है। जंगल ही जल को सहेजते हैं।
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वेस्ट यूपी में घट गया वन क्षेत्र

वनों की अवैध कटाई ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है। वेस्ट यूपी में वन क्षेत्र में काफी कमी आई है। वन विभाग ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में यूपी का आर्थिक क्षेत्रवार भौगोलिक एवं वनाच्छादित क्षेत्रफल के आधार पर गणना की। जिसमें वेस्ट यूपी का पूरा भौगोलिक क्षेत्रफल 79,832 वर्ग किलोमीटर है। इसमें कुल 3,938 वर्ग किमी यानी 4.93 प्रतिशत क्षेत्र ही वन आच्छादित बचा है। जबकि प्रदेश के अन्य हिस्सों में वनआच्छादित क्षेत्रफल की प्रतिशत मात्रा अधिक है। जिसमें केंद्रीय उत्तर प्रदेश की 5.29, पूर्वी उत्तर प्रदेश की 9.16 और बुदेलखंड की 8.29 प्रतिशत है। वेस्ट यूपी में विगत पांच वर्ष में सधन वन क्षेत्रफल का दायरा सिकुड़ा है। 2011 में सघन वन का दायरा 7 प्रतिशत के आसपास था। 2016 के आंकड़े की तुलना में यह 2 प्रतिशत कम हुआ है।
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अवैध कटाई पर्यावरण के लिए चिंताजनक

भूगोल वैज्ञानी और पर्यावरणविद् डा. कंचन सिंह कहते हैं कि विकास के नाम पर वेस्ट यूपी में पिछले 10 वर्षाें से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहां मानवीय जीवन को प्रभावित किया है, वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। वनों की अंधाधुंध कटाई होने के कारण देश का वन क्षेत्र घटता जा रहा है, जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक है। विकास कार्यों, आवासीय जरूरतों, उद्योगों तथा खनिज दोहन के लिए भी पेड़ों-वनों की कटाई वर्षों से होती आयी है। कानून और नियमों के बावजूद वनों की कटाई धुआंधार जारी है। वनों और वृक्षों का विनाश मौजूदा दौर में पश्चिम उप्र की की सबसे गंभीर और संवेदनशील समस्या बन गया है। डा. कंचन कहते हैं कि वेस्ट यूपी ही नहीं देश में भी पिछले 15 सालों में शहर बसाने और विकास के नाम पर हर मिनट 9.3 हेक्टेयर वन उजाड़ दिए गए।
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नहीं हो रहा कानून का पालन

डा. कंचन सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार ने कई ऐसे कानून बनाए जो वन काटने या पेड़ काटने पर सजा के लिए काफी थे, लेकिन उन कानूनों का आज तक कोई पालन नहीं हुआ है। पारिस्थितियों के संतुलन के लिए कंजरवेशन एक्ट 1980 लागू हुआ। 1988 में संरक्षण कानून पास हुआ। 1985 में राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड की स्थापना की गई। 1986 की राष्ट्रीय वन नीति में 60 प्रतिशत पर्वतीय भूभाग तथा कृषि भूमि को छोड़कर 20 प्रतिशत मैदानी भाग को वनाच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन ये सब कागजों में चल रहा है।
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जिला वन अधिकारी ने यह कहा

जिला वन अधिकारी अदिति शर्मा कहती हैं कि वन विभाग के पास सरकार की तरफ से किसी हाइवे से पेड़ हटाने या फिर किसी विकास कार्य में बाधक बन रहे पेड़ों को हटाने का नोटिस आता है, तभी पेड़ों को काटा जाता है। देश में ऐसी व्यवस्था अभी विभाग के पास नहीं है कि उन पेड़ों को जड़ सहित वहां से उठाकर दूसरे स्थान पर रोपित कर सके। वनच्छाादित क्षेत्र बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए समय-समय पर अभियान चलाया जाता है।

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