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मेरठ

#UPDusKaDum देश को आजाद कराने में मेरठ के इन 10 क्रांतिकारियों ने दिखाया था दम, जानिए इनके बारे में

खास बातें

1857 के विद्रोह से लेकर 15 अगस्त 1947 तक निभाई अग्रणी भूमिका
देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी मेरठ से
क्रांतिकारियों ने कई अंग्रेज अफसरों को मारकर दिल्ली किया था कूच

मेरठAug 14, 2019 / 06:05 pm

sanjay sharma

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मेरठ। 10 मई 1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ से हुई थी। यहीं से अंग्रेज सरकार के खिलाफ पहली बार स्वतंत्रता का बिगुल फूंका गया था। दरअसल, 10 मई 1857 के दिन अंग्रेज सेना में काम करने वाले भारतीय सिपाहियों ने मेरठ कैंट में 50 अंग्रेज सिपाहियों को मार डाला था। इतिहासकारों के अनुसार, इस विद्रोह की भूमिका काफी दिन पहले से बन रही थी। भारतीय सैनिकों की नाराजगी की बड़ी वजह वह आदेश था जिसकी वजह से उन कारतूसों को चलाने के लिए कहा गया जो चर्बी से बने थे। जिसके चलते अंग्रेज सेना में काम करने वाले भारत के सभी सिपाही बेहद नाराज थे। सैनिकों को लग रहा था कि ब्रिटिश सरकार जान-बूझकर उन्हें परेशान कर रही है। यही असंतोष क्रांति का कारण बना। 10 मई 1957 से लेकर 15 अगस्त 1947 तक मेरठ के असंख्य क्रांतिकारियों ने देश का झंडा बुलंद किया। इनमें से कई गुमनाम रहे, लेकिन जो आज भी याद किए जाते हैं। इनमें एक नाम ऐसा भी रहा जो था तो अंग्रेज, लेकिन मरते दम तक मेरठ में ही रहा। क्योंकि उसे भारत की धरती और इसकी संस्कृति से कुछ अधिक ही लगाव हो गया था।
1. कोतवाल धनसिंह (Kotwal Dhan Singh)

1857 की क्रांति में कोतवाल धनसिंह का अहम योगदान था। क्रांति के समय अंग्रेज अफसरों के आदेश के बावजूद धनसिंह ने क्रांतिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। इस दौरान धन सिंह कोतवाल ने अपनी जान पर खेलकर क्रांतिकारियों को अहम सूचनाएं भी पहुंचाई। इसीलिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई।
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2. मंगल पांडे (Mangal Pandey)

1857 की क्रांति में शहीद मंगल पांडे का भी विशेष योगदान है। इस क्रांतिकारी के बारे में अनेक भ्रांतियां हैं, लेकिन मंगल पांडे अंग्रेज सेना में होते हुए मेरठ के क्रांतिकारियों से जुड़े हुए थे। मंगल पांडे के कारण ही मेरठ से 10 मई 1857 की क्रांति की शुरूआत हुई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 10 मई 1857 को जिस क्रांति की शुरूआत मेरठ से हुई थी। उसका श्रेय मंगल पांडे को जाता है।
3. बाबू कुंवर सिंह (Babu Kunwar Singh)

सन 1857 की 10 मई को मेरठ के भारतीय सैनिकों की स्वतंत्रता का उद्घोष के दौरान बाबू कुंवर सिंह मेरठ में थे। क्रांति का समाचार मिलते ही इन्होंने मेरठ से पूरे देश में जासूसों का जाल बिछा दिया। छावनी के भारतीय सैनिक तो तैयार ही बैठे थे। तीन पलटनों ने स्वराज की घोषणा करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठा लिये। छावनी के अंग्रेजों मारकर क्रांतिकारी भारतीय सैनिक दिल्ली की ओर चल पड़े। सैनिक जानते थे कि अंग्रेजों से लडऩे के लिये कोई योग्य नेता होना जरूरी है। जिसके लिए बाबू कुंवर सिंह भारतीय सैनिकों को दिशा-निर्देश दे रहे थे।
4. नाहर सिंह (Nahar Singh)

1857 क्रांति के समय बागपत (तत्कालीन मेरठ) के पास जाटों की एक रियासत थी। इस रियासत के नवयुवक राजा नाहर सिंह बहुत वीर, पराक्रमी और चतुर थे। दिल्ली के मुगल दरबार में उनका बहुत सम्मान था और उनके लिए सम्राट के सिंहासन के नीचे ही सोने की कुर्सी रखी जाती थी। मेरठ के क्रांतिकारियों ने जब दिल्ली पहुंचकर उन्हें ब्रितानियों के चंगुल से मुक्त कर दिया और मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को फिर सिंहासन पर बैठा दिया तो सवाल आया कि दिल्ली की सुरक्षा का दायित्व किसे दिया जाए? इस समय तक शाही सहायता के लिए मोहम्मद बख्त खां पंद्रह हजार की फौज लेकर दिल्ली पहुंच चुके थे। उन्होंने भी यही उचित समझा कि दिल्ली के पूर्वी मोर्चे की कमान राजा नाहर सिंह के पास ही रहने दी जाए।
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5. रिचर्ड विलियम्स (Richard Wiliams)

प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जहां भारत की जनता ने पग-पग पर क्रांतिकारियों का साथ दिया। वहीं कुछ अंग्रेजों ने भी इसमें भारत की स्वतंत्रता के लिए शस्त्र उठाकर स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी। इनमें से एक थे रिचर्ड विलियम्स। ब्रिटेन में पैदा हुए रिचर्ड विलियम्स ब्रिटिश सिपाही के रूप में भारत आए। सन 1857 के गदर के समय इनकी नियुक्ति मेरठ के रिसाले (घुड़सवार टुकड़ी) में थी। मेरठ छावनी में क्रांति की ज्वाला धधक उठी। रिसाले के सैनिकों को क्रांतिकारियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया गया, लेकिन रिचर्ड विलियम्स ने इस आदेश की अवहेलना करते हुए ब्रिटिश अधिकारी एडजुटेंट टकर को गोली मार दी और स्वतंत्रता सेनानियों से जा मिले। विलियम्स ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के घोर विरोधी थे। क्रांतिकारियों के साथ विलियम्स दिल्ली जा पहुंचे और उन्होंने तोपखाने का संचालन करते हुए दिल्ली को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रिचर्ड इसके बाद मरते दम तक मेरठ में ही रहे।
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6. हवलदार मातादीन (Hawaldar Matadeen)

क्रांति की अलख जगाने वाले 85 सैनिकों की सूची में हवलदार मातादीन का नाम पहले नंबर है। इसकी पुष्टि सरजी डब्लू फॉरेस्ट के द्वारा लिखे स्टेट पेपर्स और जेबी पामर की 1857 के विद्रोह का आरंभ किताब में होती है। इसके साथ ही शहीद स्मारक पर लगे शिलापट पर भी हवलदार मातादीन का नाम पहले नंबर पर अंकित है। हालांकि नाम के आगे कुछ नहीं लिखा है। चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग के इंकार के बाद इन 85 सैनिकों जिनको विक्टोरिया पार्क स्थित जेल मेरठ में कैद किया गया था। दस मई की शाम इनके सैनिक साथियों ने हवलदार मातादीन के साहसिक पराक्रम के माध्यम से शाम को जेल से मुक्त करा लिया था। इसके उपरांत दीन!दीन! चिल्लाते हुए दिल्ली के लिये कूच कर गए। इसके बाद अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध विद्रोह पैदा हो गया था। क्रांति की अलख जगाने वाले इन 85 सैनिकों में हवलदार मातादीन अग्रणी थे।
7. पंडित प्यारे लाल शर्मा (Pandit PL Sharma)

मेरठ में आज पंडित प्यारेलाल शर्मा का नाम कौन नहीं जानता। राष्ट्र की स्वतंत्रता दिलाने में कैलाश प्रकाश जी का बड़ा योगदान रहा है। जिसके लिए उन्होंने अनेक कष्ट सहे। कैलाश प्रकाश अपने छात्र जीवन से ही गांधी क्रांति के प्रतीक बनकर कांग्रेस आंदोलन के एक अहिंसक क्रांतिकारी बन गए। प्यारे लाल शर्मा का राजनैतिक कार्यक्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली था। लाला शंकर लाल, हकीम अजमल खां, डा. अंसारी आदि उनके सहयोगी थे। 1924 से 1928 तक वे स्वराज पार्टी की ओर से निर्वाचित केंद्रीय असेम्बली के सदस्य रहे। 1932 की दिल्ली कांग्रेस की स्वागत समिति के वही अध्यक्ष थे। 1937 में गोविंद वल्लभ पंत के नेतृत्व में जो पहली कांग्रेस सरकार बनी, उसमें उन्हें शिक्षा मंत्री का पद दिया गया था। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में वे मेरठ में गिरफ्तार हुए। पर जेल के अंदर ही गंम्भीर रूप से बीमार पड़ जाने के कारण उन्हें रिहा कर दिया और 12 जनवरी 1941 को दिल्ली के एक अस्पताल में उनका देहांत हो गया।
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8. कैलाश प्रकाश (Kailash Prakash)

मेरठ के कैलाश प्रकाश भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक थे। महात्मा गांधी के मेरठ आगमन के दौरान आंदोलन में भाग लेने वाले युवकों की तलाश में अंग्रेज छापेमारी कर रहे थे, उस दौरान कैलाश प्रकाश अंग्रेजों की हिटलिस्ट में थे। कैलाश प्रकाश ने गांधी जी की रैली का नेतृत्व किया था और युवाओं की विशाल फौज तैयार की थी। भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। 1952 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ा।
9. धर्म दिवाकर शर्मा (Dharam Diwakar Sharma)

पंडित धर्म दिवाकर शर्मा का नाम प्रमुख गांधीवादी लोगों में लिया जाता है। धर्म दिवाकर शर्मा

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अजीवन गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले लोगों में से एक रहे। आजादी के दौरान जब जेल भरो आंदोलन चल रहा था। धर्म दिवाकर को 25 दिन की जेल हुई थी।
10. राव रोशन सिंह (Rao Roshan Singh)

राव रोशन सिंह एक ऐसा क्रांतिकारी जो मेरठवासियों के लिए एक गुमनाम चेहरा है। कस्बा दोघट के राव रोशन सिंह क्रांतिकारियों को छुपाने का काम करते थे। इसके साथ ही वे क्रांतिकारियों की गुप्त बातें इधर से उधर पहुंचाने का काम करते थे। दोघट में राव रोशन सिंह की बड़ी हवेली थी। जिसके नीचे एक बड़ा तहखाना था। इतिहासकारों के अनुसार इसी तहखाने में क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकें होती थी। 1857 की क्रांति के बाद राव रोशन सिंह की यह हवेली कई सालों तक क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र बनी रही थी।

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