उन्होंने कहा कि भारत-चीन की तरह ही तेजी से विकास के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। हालांकि, उन्होंने भारत को अपनी पहचान बनाए रखने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि जब हम भारत के कर्इ राज्यों में जाते हैं तो बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और आधुनिकता को देखते हैं। यह सब ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि जमीन पर खड़ी की गर्इ हैं। उन्होंने कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, उसकी पहचान बनार्इ रखी जानी चाहिए। देश में साइंस और टेक्नोलॉजी के जरिए जितने बदलाव हुए हैं, शायद कहीं और नहीं हुए होंगे। मेरठ के शास्त्रीनगर स्थित सीजेडीएवी पब्लिक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर दलार्इ लामा ने ये बातें कही।
ब्यूटीफुल और एंगर फेस
नोबेल पुरस्कार विजेता दलार्इ लामा ने कहा कि विश्व शांति के लिए सभी देशों के धर्मगुरुओं ने अहिंसा या शांति की बात कही है। 21वीं सदी में सभी देशों को इसे अमल में लाना चाहिए। गौतमबुद्ध की नीति पर चलेंगे तो यह संभव है। उन्होंने कहा कि विश्व शांति को दो चेहरों से समझा जा सकता है। ब्यूटीफुल फेस और एंगर फेस। ब्यूटीफुल फेस में स्माइल, ऑनेस्टी और सिन्सियरिटी होती है, यह रियल ब्यूटी है। इसके लिए मेकअप करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। एंगर फेस पर र्इर्ष्या और गुस्सा दिखेगा, जो किसी के लिए भी सही नहीं है। ये गुण दो चेहरों के मेंटल लेवल को भी दर्शाता है। इसलिए दुनिया के देश हिंसा त्यागें और अहिंसा अपनाएं। इस मौके पर दलार्इ लामा ने आयुर्ज्ञान न्यास के पाठ्यक्रम का शुभारंभ किया। प्रधानाचार्य डॉ. अल्पना शर्मा ने उन्हें तुलसी का पौधा और चार वेद व शाल से अभिनंदन किया। स्कूली बच्चों के साथ भी उनका सवाल-जवाब का दौर चला।