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बाल सुधार गृह में कुकर्म का मामला आया सामने, दोषियों पर हुर्इ ये कड़ी कार्रवार्इ दोषी डीपीओ जांच कमेटी के साथ राजकीय बाल सुधार गृह में अव्यवस्था, बवाल और यौन शोषण जैसे मामले पहले भी उठते रहे हैं। मेरठ के बाल सुधार गृह में पहली बार यौन शोषण का मामला खुलकर आया है। इसकी कई बार जांच हो चुकी है और हर बार जांच ठंडे बस्ते में बंद कर दी जाती रही। बाल सुधार गृह का पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार की नींव पर टिका है। बाल सुधार गृह के भूतल पर बालक तो प्रथम तल पर किशोर रखे जाते थे। यहां पर किशोरों द्वारा लगातार बवाल होते रहे, जबकि बालकों के शोषण के मामले भी सामने आते रहे।
शासन से आने वाले अनुदान की भी बंदरबांट बाल सुधार गृह की व्यवस्था के लिए विभाग से धनराशि आवंटित होती है, लेकिन विभागीय अधिकारी और कर्मचारी इस धन की बंदरबांट करते हुए बालकों का हर तरह से शोषण करते हैं। उनके लिए खेलकूद का सामान उपलब्ध कराना तो दूर भोजन की भी उचित व्यवस्था यहां नहीं होती है।
कुकर्म का आरोपी भी लगातार छह साल से कार्यरत कुकर्म का आरोपी जावेद भी यहां लगातार छह साल से कार्यरत था। जबकि उसकी कई बार बालक शिकायत कर चुके थे, लेकिन प्रभारी अधीक्षक से साठगांठ के चलते जावेद की संविदा का लगातार नवीनीकरण होता रहा।
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मंद बुद्धि बच्ची से रेप के मामले में पुलिस का यह ‘खेल’ आया सामने, हर कोर्इ रह गया दंग डीपीओ कर रहा जांच को प्रभावित इस समय बाल सुधार गृह की जांच दो स्तर पर चल रही है। एक तरफ जहां डिप्टी चीफ प्रोबेशन अधिकारी पुष्पेंद्र सिंह जांच कर रहे हैं, तो शासन स्तर से डिप्टी डायरेक्टर बिजेंद्र निरंजन आए हुए हैं। इन दोनों अधिकारियों के साथ इस पूरे मामले को दबाने वाले डीपीओ श्रवण कुमार गुप्ता का लगातार साथ बने रहने से भी जांच प्रभावित हो रही है। जिलाधिकारी अनिल ढींगरा ने अपनी रिपोर्ट में डीपीओ के खिलाफ घोर लापरवाही की बात कहते हुए विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की थी।
बाल गृह में रहने वाले बच्चाें पर दबाव विभागीय सूत्रों की मानें तो घटना के बाद बाल सुधार गृह की आंतरिक व्यवस्था सुधारने के साथ ही जांच को देखते हुए यहां रहने वाले बच्चों पर भी पक्ष में बयान देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। जांच अधिकारी भी डीपीओ और पुराने कर्मचारियों को साथ लेकर ही बयान ले रहे हैं।
दर्ज रिपोर्ट में भी भारी त्रुटि इस पूरे मामले में जो रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई गई है उसमें भी भारी त्रुटि है। रिपोर्ट में आईओ का मोबाइल नंबर भी नौ डिजिट का दिया हुआ है। इसको भी रिपोर्ट दर्ज करते समय संज्ञान नहीं लिया गया।
बोले अधिकारी पूरे मामले पर जिलाधिकारी ने चुप्पी तोड़ते हुए बताया कि घटना की जांच रिपोर्ट शासन को भेजी जा चुकी है। डीपीओ की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। शासन स्तर से ही जो कार्रवाई होगी वह मान्य होगी। थाने में भी घटना की प्राथमिकी दर्ज कराई जा चुकी है।
थाने में दर्ज कराई रिपोर्ट में है झोल थाने में जो रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। उसको मेरठ प्रशासन को अपने स्तर से दर्ज कराया जाना था, लेकिन अधिकारियों ने मामले में बचते हुए इसकी रिपोर्ट एक 14 साल के बच्चे के माध्यम से दर्ज कराई है। 14 साल के बच्चे के माध्यम से एफआईआर दर्ज कराए जाने से ही पूरी जांच प्रक्रिया और इसमें फंस रहे लोगों को बचाने की बड़ी साजिश चल रही है। वहीं रिपोर्ट में आईओ का नाम तो दर्ज किया गया है, लेकिन जो उसका मोबाइल नंबर दिया गया है वह नौ अंकाें का है। जिसे मिलाने पर यह नंबर मौजूद नहीं है कि आवाज आती है।