अंग्रेजों की इस काली पलटन में भारतीय सैनिक ही भरे हुए थे। काली पलटन के सैनिक कबाड़ी बाजार स्थित नगरवधुओं (वेश्याओं) के कोठे पर जाते थे और वहां पर नाच गाना सुना करते थे। मेरठ कालेज के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ. विघ्नेश त्यागी बताते हैं कि 7 मई 1857 को जब काली पलटन के भारतीय सैनिक नगर वधुओं के पास पहुंचे तो नगरवधुओं ने उनके सामने नाचने और दिल बहलाने से मना कर दिया। भारतीय सैनिकों के जमीर को नगर वधुओं ने झकझोंरते हुए कहा कि ‘लाओ अपने हथियार हमें दो। सिपाहियों को जेल से हम आजाद करा लेंगीं। तुम हमारी चूड़ियां पहनकर यही बैठो।’ नगर वधुओं का यह कटाक्ष कोठों पर पहुंचे काली पलटन के सैनिकों को इस कदर चुभ गए कि उन्होंने जेल में बंद अपने सैनिक को छुटाने लेने की शपथ ली।
यह भी पढ़े : राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पश्चिमी उप्र में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना को लेकर कही ये बड़ी बात बता दें कि भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम को इस वर्ष 165 साल पूरे हो रहे हैं। इतने साल गुजरने के बाद आजादी की उस पहली लड़ाई को न तो देश भूल पाया है और न इसका इतिहास। मेरठ क्रांति के उद्गम स्थल पर क्रांति के पदचिह्न् तो अपनी अमिट पहचान के साथ ही हैं। नगर वधुओं का नाम भी क्रांति से जुड़ा हुआ है। काली पलटन सैनिकों में क्रांति चिंगारी भड़काने का श्रेय मेरठ में रहने वाली नगर वधुओं को भी जाता है।