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मेरठ

जंग-ए-अजीम की वो शख्सियत जिनकी आवाज से खौफ खाते थे फिरंगी

ऑल इंडिया अंजुमन मशविरा कमेटी के महासचिव जीशान खान ने इस मौके पर अताउल्लाह शाह बुखारी के चित्र पर पुष्पअर्पित किए

मेरठSep 23, 2021 / 06:58 pm

Nitish Pandey

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मेरठ. देश की आजादी के लिए जंग-ए-अजीम में यू तो लाखों क्रांतिकारियों ने अपनी कुर्बानी दी और देश को आजाद करवाने में अहम रोल अदा किया। लेकिन कुछ ऐसी शख्सियत भी हैं जिनको आज भी याद किया जाता है और उनकी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं क्रांतिकारी अताउल्ला शाह बुखारी। उनकी जयंती 23 सितंबर की पूर्व संध्या पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
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इस कार्यक्रम में कई बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। तिवारी क्वाटर सोसाइटी के सेक्रेटी और ऑल इंडिया अंजुमन मशविरा कमेटी के महासचिव जीशान खान ने इस मौके पर अताउल्लाह शाह बुखारी के चित्र पर पुष्पअर्पित किए। उन्होंने कहा कि मौलाना सैयद अताउल्लाह शाह बुख़ारी का जन्म पटना में 23 सितम्बर 1892 को हुआ था।
उन्होंने बताया कि 1914 में 21 साल की उम्र में पटना छोड़ शाह जी अमृतसर आ गए। ये वो दौर था जब दुनिया पर पहली जंग अजी़म मुसल्लत की जा रही थी। शाह ने दर्स व तदरीस का काम अमृतसर में किया। हिन्दुस्तान को पहली जंग ए अज़ीम के बाद जो सिला मिला उसने पूरे हिन्दुस्तान के लोगों को सोचने को मजबूर कर दिया।
1919 के जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम के बाद हिन्दुस्तान की सियासत में एक नया दरवाज़ा खुला, हिन्दुस्तान की सियासत नए लोगों के हाथों में जाने लगी, रौलेट एैक्ट के विरोध में गांधीजी ने हड़ताल बुलाई और अमृतसर स्टेशन पर पुलिस ने हड़तालियों पर गोलीबारी कर दी। जिस वजह कर छह लोग मारे गए। इस हादसे ने अताउल्ला शाह साहब की सियासी ज़िन्दगी का आग़ाज़ कर दिया, शाह जी कहते हैं उस हादसे ने और मौलाना आज़ाद के अल हिलाल में मेरी ज़िन्दगी की काया पलट दी।
उन्होंने बताया कि शाह जी ने डंके की चोट पर कहा था कि अंग्रेजों के विरूद्ध ख़िलाफ़त कमेटी बनाउंगा और बना कर ही दम लिया। शाह जी हिन्दुस्तान में जहां जाते अपनी तक़रीर से लोगों के दिलों में अंग्रेज़ से नफ़रत, अंग्रेज़ी सामान से नफ़रत और उसकी तहज़ीब से नफ़रत को भरते चले जाते। उन्होंने कहा था कि वे एक सिपाही हैं। तमाम उम्र अंग्रेज़ों से लड़ता रहा और लड़ता रंहूगा। मैं उन चुटियों को चीनी खिलाने के लिए तैयार हुँ जो अंग्रेज़ों का काट खाए। ख़ुदा की क़सम मेरा सिर्फ़ एक दुश्मन है, अंग्रेज़।
उन्होंने कहा कि जब सरहदें बँटने लगी तो शाह साहब टूट गए। बंटवारे के बाद शाह जी ने सियासत से किनारा कर लिया। शाह जी बँटवारे के ख़िलाफ़ थे इसलिए उन्होंने ख़ुद को हारा हुआ मान कर सियासत से दूरी बना ली। अंत में उन्होंने कहा कि आज हम शाह जी के इस जन्मदिन के मौके पर एक संकल्प लें कि अपने देश और अपनी संप्रदायिक सौहार्द को बनाने में योगदान प्रदान करेंगे और इंसानियत का पैगाम देकर देश को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।

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