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होली पर इस बार कलर बम और क्लाउड के साथ बहुत खास हैं ये पिचकारियां, देखें वीडियो रावण को शास्त्रों-पुराणों में कुछ भी कहा गया हो, लेकिन रावण बहुज्ञानी और पर्व की मान्यताओं को मानने वाला था। पंडित भारत ज्ञान भूषण के अनुसार सामवेद के अनुसार सतयुग काल में होली अलग तरीके से मनाने की परंपरा थी। गेहूं की फसल जब काटी जाती थी, तो खेत में ही लोग एक-दूसरे को धूल और मिट्टी लगाकर गेंहू की फसल बढ़िया होने की खुशियां मनाते थे। परंपरागत रंग जो कि तरह-तरह के पेड़-पौधों और फूलों से बनाए जाते थे। उनसे होली खेली जाती थी। विवलेश्वर महादेव मंदिर के पंडित हरिचंद्र जोशी के अनुसार रावण और मंदोदरी की शादी के बाद जब पहली बार त्योहार पर मंदोदरी अपने मायके मेरठ आई तो रावण भी होली के त्योहार पर अपनी ससुराल आए थे। ये रावण की पहली होली थी, जिसे उन्होंने अपनी ससुराल में मनाया था। रावण और मंदोदरी को मयदानव अखाड़े में महादेव ने आशीर्वाद दिया था। इसके बाद से ही यह परंपरा पड़ गई कि शादी के बाद पहली होली दूल्हा अपनी ससुराल में ही मनाता है।
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Holi 2019: होलिका दहन के दिन आजमाएं ये 9 अचूक टोटके, होगी अपार धन की प्राप्ति! यह परंपरा मेरठ ही नहीं पूरे पश्चिम उप्र में लागू है। यहां पर शादी के बाद पड़ी पहली होली को युवक अपनी ससुराल जाता है और वहीं पर होली मनाता है। इसके बाद अपनी पत्नी को लेकर अपने घर वापस आ जाता है। युवक जब पहली होली अपनी ससुराल में मनाता है तो उसको उपहार भी दिया जाता है। यह उपहार उसकी सास देती है। पंडित जोशी ने बताया कि इस मंदिर में पुरातन काल की पत्थर की कई मूर्तियां रखी हुई हैं। जिसके बारे में बताया जाता है कि इन मूर्तियों में रावण और मंदोदरी को होली खेलते दर्शाया गया है। ये मूर्तियां सैकड़ों साल पुरानी बताई जाती है।