दरअसल, जसोवर पहाड़ी पर आठ साल पहले 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में स्पोर्ट्स स्टेडियम का निर्माण शुरू हुआ था, जिसका उद्देश्य था कि यहां की प्रतिभाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन करे। यहां विभिन्न खेलों के लिए ग्राउंड और हॉस्टल भी तैयार करना था। लेकिन निर्माण के साथ ही भ्रष्टाचार का खेल शुरू हो गया। यह अधिकारियों के लिए लूट का मुफीद अड्डा बन गया।
इस बीच शासन ने एक बार फिर से अधूरे स्टेडियम को पूरा करने के लिए एक करोड़ 86 लाख रुपए स्वीकृत किए। लैकफैड को स्टेडियम के निर्माण के लिए शासन की तरफ से कुल तीन करोड़ 97 लाख 18 हजार रुपए दिए गए। मगर इसके बाद भी अधूरी व टूटी चहारदीवारी और जर्जर बिल्डिंग के अलावा लैकफैड वहां कुछ नहीं बनवा सकी। रुपए का आपस में बंदरबाट हो गया। हालत यह है कि आठ साल समय बीतने के बाद भी स्टेडियम में मुख्य पवेलियन का निर्माण नहीं हो पाया। जो निर्माण कार्य किया भी गया था वह घटिया दर्जे का है।
सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह कि इन घोटालेबाजों ने कागजो पर स्टेडियम का 75 प्रतिशत से अधिक का कार्य पूरा दिखा दिया, जबकि मौके पर सभी कार्य अधूरे हैं।
मामले की शिकायत आरटीआई कार्यकर्ता इरशाद अली ने 26 जून 2017 को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर की। इसमें उन्होंने निर्माण कार्य मे हुए भ्रष्टाचार की जांच और दोषी लोगों से पैसे की रिकवरी की मांग की। शिकायत पर सीएम ने 16 अगस्त को 2017 टेक्निकल जांच कमेटी(टीएसी) का गठन किया।
जांच में इस अनिमितता के लिए अवर अभियंता, सहायक अभियंता, अधिशासी अभियंता को सीधे तौर पर दोषी बताया गया है। इसके साथ ही उच्च स्तर पर अधिकारियों की निर्माण कार्य की देख रेख में लापरवाही पाई गई है। 3 अप्रैल 2018 को शासन ने अपर मुख्य सचिव सहकारिता को पूरे मामले में कड़ी करवाई करने व इसमें दोषी अधिकारियों से घोटाले की धनराशि की वसूली करने का निर्देश दिया गया है।