ऐसी ही एक शिक्षिका मिर्जापुर जिले में हैं। जिन्होने अपनी मेबनत के बल पर स्कूल और बच्चों की तकदीर को बदलने का काम किया है। नाम है राम सवारी देवी। बच्चों के प्रति समपर्ण और शिक्षा क्षेत्र में सुधार कर राम सवारी सभी शिक्षकों के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं। उनके इसी कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें 2016 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भी किया था।
मूल रूप मिर्जापुर जिले की अहरौरा थाना क्षेत्र के इलिमियाचट्टी के रहने वाली रामसवारी देवी का पूरा जीवन ही शिक्षा को लेकर समर्पित रहा। राजगढ़ ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय इमिलियाचट्टी में 1982 में अध्यापक बनीं, स्कूल के शुरुआती दौर में जब उन्होंने पढ़ाना शुरू किया तो बच्चो के बीच पढ़ाई के साथ साथ रचनात्मक विकास कर जोर दिया। ताकि बच्चो का सम्पूर्ण विकास हो सके। वह हमेशा समय से स्कूल पहुंचकर बच्चों के साथ घुल-मिल कर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
पत्रिका से खास बातचीत के दौरान रामसवारी देवी कहती है कि उन्होंने बच्चों को कभी भी छात्र नही माना। वह हमेशा खुद को इन बच्चों के एक अभिभावक के रूप मे मान कर इन्हें पढ़ाने का कार्य करती है। उनका कहना था कि बच्चों में पढ़ाई के साथ साथ समाज से जुड़ी व्यवहारी बातों का भी ज्ञान होना चाहिए।
इसके लिए वह बच्चों को हमेशा समझाती और पढ़ाती रहती है कि कैसे शिक्षा के माध्यम से समाज मे व्याप्त कुरीतियों को बदला जा सकता है। रामसवारी का मानना है कि जब छात्र-छात्राओं को हम अपने बच्चे मान लेते हैं। उनकी कमी, उनके संस्कार हम बातों को खुद से जोड़ते हैं तो हमें उनकी तरक्की का हमेशा खयाल रहता है। इसलिए हमारे पढ़ाये सैकड़ों शिक्षक देश की सेवा में आज बड़ी उंचाई पर काम कर रहे हैं।
शिक्षा में योगदान के लिए उन्हें 2016 में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। रामसवारी देवी जिले कि उन चंद महिला शिक्षिकों में शामिल है जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने पर यह पुरस्कर प्राप्त हुआ है। खास बात तो है कि रामसवारी देवी के पति भागवत सिंह भी शिक्षक थे। उन्हें भी 2014-15 में शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है। रामसवारी देवी चार महीने बाद स्कूल से रिटायर हो जाएंगी मगर आज भी बच्चो को पढ़ाने को लेकर उनके लगन को देखते हुए शिक्षा विभाग भी उन्हें सम्मान कि नजरों से देखता है।