दरअसल, 1967 में भारत और चीन के बीच सिक्किम के चोला इलाके में सीमित स्तर पर युद्ध हुआ था। दो दिन चले इस युद्ध में चीन को बुरी तरह मात खानी पड़ी थी। इसके बावजूद चीन ने 2017 में सिक्किम से लगते डोकलाम में गुस्ताखी की थी। उस दौरान ढ़ाई महीने तक दोनों देश के बीच तनातनी की स्थिति बनी रही। बाद में उसे पीछे हटना पड़ा। उस समय चीन भारत को धमकाते हुए बार-बार 1962 युद्ध की याद दिलाता रहा। बता दें कि 1962 में भारत को चीन के हाथों करारी हार मिली थी। भारत को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ा था। इसके उलट चीन 1967 और 1986 की घटना को भूल जाता है। दोनों मौकों पर भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को धूल चटाने का काम किया था।
1967 में चीन के सैनिक चोला इलाके जिसे डोकलम प्लेटू कहा जाता है और जिसमें भूटान भी आता है, में बिना सूचना के दाखिल हो गए थे। उस वक्त चीन भारत की उन चोटियों को हड़पने की कोशिश कर रहा था जो इस इलाके में आती हैं। भारत ने समय रहते चीन को करारा जवाब दिया। दो दिन की इस लड़ाई में हमारे करीब पचास जवान शहीद हो गए थे, लेकिन भारतीय सेना ने चीन के 300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। इससे चीनी सेना में खलबली मच गई। भारतीय सेना ने बचे हुए चीनी सैनिकों को न सिर्फ दूर तक खदेड़ दिया था, बल्कि उनकी हिम्मत इस कदर तोड़ दी कि उन्होंने दोबारा इस तरफ पलटकर नहीं देखा।
1967 के बाद 1986 में अरुणाचल प्रदेश के स्ंग्दोंग्चू इलाके में एक बार फिर चीन ने घुसपैठ की कोशिश की थी। यह क्षेत्र तवांग के उत्तर में स्थित है। तब भी भारत ने चीन के सैनिकों को काफी पीछे तक खदेड़ दिया था। भारत से मिली इस करारी हार को छिपाने के लिए चीन ने तिब्बत में सेना की कमान संभाल रहे अपने मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट कमांडर और मिलिट्री रीजन के चीफ को भी पद से हटा दिया था। उस वक्त भारतीय सेना की कमान जनरल सुंदरजी के हाथों में थी। इस मिशन को ऑपरेशन फॉलकॉन का नाम दिया गया था। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि डोकलम इलाके में आखिरी बार गोली सन् 1967 में चली थी। उसके बाद यहां पर कभी गोली नहीं चली है। रक्षा विशेषज्ञ पीके सहगल का कहना था कि आज की तारीख मे भारत की आर्मी लगातार बैटल टेस्ट पर है, जबकि चीन ने 1962 के बाद से कोई जंग नहीं लड़ी है। इसलिए भी भारत का पलड़ा भारी है।