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गौहत्या के 53 आरोपी हो गए अदालत से बरी, एक को भी नहीं हुई सजा

झारखंड की खूंटी जिला अदालत के आंकड़ों से ये जानकारी मिली है। गौहत्या के 16 मामलों में 53 आरोपियों को बरी कर दिया गया।

नई दिल्लीOct 02, 2019 / 10:50 am

Kapil Tiwari

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रांची। झारखंड में पिछले 6 साल के अंदर गौहत्या के जितने भी मामले दर्ज किए गए, उन सभी में आरोपियों को बरी कर दिया गया है। चौंकाने वाली ये जानकारी खूंटी जिला अदालत के आंकड़ों की जांच करने के बाद सामने आई है।

53 लोगों को गौहत्या के मामलों में बरी कर दिया गया

एक अंग्रेजी अखबार ने अदालत के आंकड़ों की जांच की है, जिसमें सामने आया है कि कि बीते 6 साल के अंदर जिन 53 लोगों पर गोहत्या का मामला दर्ज हुआ वो सभी बाद में बरी कर दिए गए। एक भी शख्स को गौहत्या के आरोप में दोषी नहीं ठहराया जा सका है। रिपोर्ट के मुताबिक, छह साल में गोहत्या या इसकी मंशा के तहत कुल 16 मामले दर्ज किए गए जिसमें 53 लोगों को आरोपी बनाया गया, लेकिन बाद में इन सभी को बरी कर दिया गया।

आरोपियों को बरी किए जाने की क्या रही वजह?

इन आरोपियों को बाद में इसलिए बरी कर दिया गया कि जो तथाकथित गोमांस ज़ब्त किया गया, उसे जांच के लिए भी भेजा नहीं जा सका। इतना ही नहीं कुछ मामलों में तो चश्मदीद ही अदालत में पेश नहीं हुए, जिसकी वजह से अदालत को मजबूरन आरोपियों को बरी करना पड़ा। आंकड़ों की जांच में पता चला है कि जिन मामलों में चश्मदीद पेश नहीं हुए, ऐसे दो मामले हैं और चश्मदीद बजरंग दल के कार्यकर्ता हैं।

इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि जिन लोगों को हिरासत में लिया गया, उन्हें उत्पीड़न सहना पड़ा। कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़े और ज़मानत पाने के लिए कई हज़ार रुपये भी भरने पड़े।

ऐसे ही कुछ मामलों का जिक्र हम कर रहे हैं-

1. 29 अगस्त 2017

खूंटी पुलिस स्टेशन में दर्ज किए गए इस केस में चार लोगों पर कसाईखाने के लिए गाय को बेचने का आरोप लगा था। इस मामले में 25 फरवरी, 2019 को अदालत का फैसला आया और फैसले में चारों आरोपियों को बरी कर दिया गया। इसकी वजह रही कि अदालत में पांच गवाह अपने बयान से ही पलट गए। अदालत ने यह भी कहा कि जब्त की गई सामग्री को उसके सामने पेश नहीं किया गया और आरोपियों को बरी कर दिया गया।

2. 9 दिसंबर 2016

गौहत्या का ये केस रनिया पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया। इस मामले में फैसला 16 अप्रैल, 2019 को आया था। फैसले में कहा गया कि गाय के स्वामित्व का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं था और सभी चार को यह कहते हुए बरी कर दिया कि मामले का समर्थन करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था।

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