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अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर कश्मीर पर नरसिम्हा राव का दिया साथ

पाकिस्‍तान ने भारत के खिलाफ मानवाधिकार उल्‍लंघन का आरोप लगाया था।

Aug 16, 2018 / 02:24 pm

Dhirendra

vajpayee

अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर कश्मीर पर नरसिम्हा राव का दिया साथ

नई दिल्ली। अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा ही एक ऐसे नेता रहे जिन्‍होंने देश के लिए कभी किसी लाइन की परवाह नहीं की। यही कारण है कि उन्‍हें विरोधी पार्टियों की ओर से भी पूरा सम्‍मान मिला। इसका एक ऐतिहासिक उदाहरण 1994 में देखने को उस समय मिला जब विपक्ष में होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजे गए प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्‍हा राव पीएम थे। बता दें कि उस समय पाकिस्‍तान ने भारत के खिलाफ मानवाधिकार उल्‍लंघन का आरोप लगाया था।
पाक ने पेश किया था भारत के खिलाफ प्रस्‍ताव
दरअसल, 27 फरवरी 1994 को पाकिस्तान ने यूएन मानवाधिकार आयोग में ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) के जरिए एक प्रस्ताव रखा। उसने कश्मीर में हो रहे कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर भारत की निंदा की। अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता तो भारत को यूएन सुरक्षा परिषद के सख्‍त आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलने के बाद नरसिम्‍हा राव यूएन में भारत के खिलाफ इस प्रस्‍ताव को गिराने में सक्षम सबित हुई थी।

वाजपेयी को आगे कर राव ने दिया अनुभव का परिचय
1994 में इस संकट से भारत को बचाने के लिए पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव पाकिस्‍तान के खिलाफ विपक्ष को साथ लेकर वैश्विक स्‍तर पर लॉबिंग की थी। नरसिम्‍हा राव ने इसके लिए जो एक कमेटी बनाई थी उनमें अटल बिहारी वाजपेयी को भी रखा था। इस मामले में खुद तत्कालीन पीएम राव अपने हाथों में ले लिया और जिनेवा में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सावधानीपूर्वक एक टीम बनाई। इस प्रतिनिधिमंडल में तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, ई अहमद, नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला और हामिद अंसारी तो थे ही, इनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। वाजपेयी उस समय विपक्ष के नेता थे और उन्हें इस टीम में शामिल करना मामूली बात नहीं थी। यही वह समय था जब देश के बचाव में सभी पार्टियों और धर्म के नेता एकसाथ खड़े हो गए थे।
राव और वाजपेयी ने मिलकर ओआईसी को साधा
इस मुहिम को अपने हाथ में लेने के बाद नरसिम्हा राव और वाजपेयी ने उदार इस्लामिक देशों से संपर्क शुरू किया। राव और वाजपेयी ने ही ओआईसी के प्रभावशाली छह सदस्य देशों और अन्य पश्चिमी देशों के राजदूतों को नई दिल्ली बुलाने का प्रबंध किया। दूसरी तरफ अटल बिहारी वाजपेयी ने जिनेवा में भारतीय मूल के व्यापारी हिंदूजा बंधुओं को तेहरान से बातचीत के लिए तैयार किया। वाजपेयी इसमें सफल हुए।
मुस्लिम राष्‍ट्रों ने दिया भारत का साथ
पाक के प्रस्‍ताव पर यूएन में मुस्लिक देशों ने भारत का साथ दिया। पाकिस्‍तान को समर्थन देने वाले मुस्लिम देशों ने प्रस्‍ताव के पक्ष में मतदान करने से इनकार कर दिया। इंडोनेशिया और लीबिया ने ओआईसी द्वारा पारित प्रस्ताव से खुद को अलग कर लिया। सीरिया ने भी यह कहकर पाकिस्तान के प्रस्ताव से दूरी बना ली कि वह इसके संशोधित प्रस्‍ताव पर गौर करेगा। 9 मार्च 1994 को ईरान ने सलाह-मशवरे के बाद संशोधित प्रस्ताव पास करने की मांग की। चीन ने भी भारत का साथ दिया। अपने दो महत्पूर्ण समर्थकों चीन और ईरान को खोने के बाद पाकिस्तान ने यह प्रस्ताव यूएन से वापस ले लिया और भारत की जीत हुई।

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