शुक्रवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के प्रवक्ता ने कहा कि पूरा देश इस मामले से जुड़ा हुआई है। कोर्ट का फैसला बड़े स्तर पर लोगों को प्रभावित कर सकता है इसलिए इसे बड़ी बेंच को सौंपा जाना चाहिए। तो हिंदू महासभा के अधिवक्ता विष्णु शंकर ने कहा कि यह मामला संविधान का नहीं है। ये सिर्फ एक तरह का संपत्ति विवाद है, लिहाजा इसे बड़े बेंच के पास भेजने की कोई जरूरत नहीं है।
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के स्वामित्व को लेकर इससे पहले 6 अप्रेल को कोर्ट ने सुनवाई के लिए आज की तारीख मुकर्रर की थी। लेकिन मुस्लमिक पक्ष की ओर से अधिवक्ता राजीव धवन की बीमारी की वजह से न आने पर इसे टाल दिया गया।
अयोध्या में राम
मंदिर को लेकर आया बड़ा बयान, जताई 2019 से पहले की उम्मीद तीसरे पक्ष को कोर्ट कर चुका खारिजइससे पहले हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में किसी भी तीसरे पक्ष की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर चुका है। कोर्ट ने कहा था कि वह किसी भी पक्षकार को बातचीत के जरिए विवाद का हल निकालने के लिए नहीं कहेगा। दरअसल अयोध्यावासियों के एक समूह ने ने पीठ से कहा था कि हम आपसी बातचीत से हल निकालना चाहते हैं। इसपर पीठ ने कहा कि अगर कोई भी पक्षकार कोर्ट के बाहर जाकर सुलह चाहता है तो कर सकता है लेकिन हम इसपर कुछ नहीं कहेंगे।
एक फरवरी को हुई चुनाव के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से इस केस की सुनवाई 2019 लोकसभा चुनाव तक टालने की मांग की थी। उन्होंने अदालत से अपील की थी कि इसके प्रभाव को देखते हुए इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम अदालत को यकीन दिलाते हैं कि हम किसी भी तरह से इसे और आगे नहीं बढ़ने देंगे। केवल न्याय ही नहीं होना चाहिए, बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये किस तरह की पेशकश है? इससे पहले मामले की सुनवाई क्यों नहीं हो सकती? इसका जवाब कपिल सिब्बल नहीं दे पाए थे। इसके बाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी सुनवाई को टालने की कई बार अपील कर चुके हैं।