अयोध्या के निर्मोही अखाड़ा व मणिराम दास छावनी होते हुए संत तुलसीदास घाट पर सरयू में उनके शव को प्रवाहित किया जाएगा। बता दें कि महंत भास्कर दास निर्मोही अखाड़ा के महंत थे और राम जन्मभूमि मामले के मुकदमे में इनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। इस मुकदमे में वह हिंदू पक्ष से मुख्य पक्षकार के रूप में मुकदमा लड़ रहे थे। इससे पूर्व शुक्रवार को भी महंत का हालचाल जानने कई सामाजिक राजनीति लोग अस्पताल पहुंचे थे।
मूलत: गोरखपुर के रहने वाले महंत भास्कर दास 16 साल की उम्र में अयोध्या की हनुमान गढ़ी पहुंचे थे। जहां वह महंत बलदेव दास निर्मोही अखाड़े के शिष्य बने। इसी दौरान उनकी शिक्षा दीक्षा भी हुई। कुछ वर्षों बाद उन्हें राम चबूतरे पर बिठा दिया गया और पुजारी नियुक्त किया गया। 1986 में उनके गुरु भाई बाबा बजरंग दास का निधन हो गया, जिसके बाद भास्कर दास को हनुमान गढ़ी का महंत बना दिया गया। 1993 में महंत भास्कर दास निर्मोही अखाड़े के उपसरपंच बनाए गए। इसके बाद 1993 में ही सीढ़ीपुर मंदिर के महंत रामस्वरूप दास के निधन के बाद उनके स्थान पर भास्कर दास को निर्मोही अखाड़े का सरपंच बना दिया गया। तब से यही निर्मोही अखाड़े के महंत रहे।
राम जन्मभूमि पर अपने दावे को लेकर सन् 1959 में निर्मोही अखाड़े के तत्कालीन महंत रघुनाथ दास ने न्यायालय में याचिका दाखिल किया था। वहीं उसी परिसर में स्थित राम चबूतरे के पुजारी के रूप में पूजा पाठ करने वाले महंत भास्कर दास ने भी इसी मुकदमे में शामिल होते हुए अपनी ओर से भी एक और मुकदमा दाखिल किया था। करीब 5 दशक तक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 30 सितंबर, 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपना फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने हिंदू मुस्लिम दोनों पक्षों के पक्षकारों को एक-एक हिस्से की भूमि देने का फैसला सुनाया गया था, लेकिन पूरे भूखंड पर अपने स्वामित्व की लड़ाई को लेकर निर्मोही अखाड़े के सरपंच महंत भास्कर दास ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी और वर्तमान में भी वह अपने अधिवक्ता के जरिए इस मुकदमे की पैरवी कर रहे थे।