11 साल पहले आज ही के दिन हुआ था बाटला हाउस, जानिए उस एनकाउंटर की पूरी कहानी
आतंकियों की गोली से मारे गए इंस्पेक्टर एमसी शर्मा
पुलिस की गोली से मारे गए दो आतंकी, दो हुए गिरफ्तार, एक हो गया फरार
दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस के खिलाफ मुकदमा चलाने से कर दिया था इनकार
नई दिल्ली। ठीक 11 साल पहले आज ही के दिन दिल्ली का बाटला हाउस एनकाउंट हुआ था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम के साथ मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए, दो गिरफ्तार हुए और एक फरार होने में सफल रहा। दिल्ली पुलिस का जांबाज इंस्पेक्टर इस मुठभेड़ में आतंकियों की गोली से शहीद हो गया। एनकाउंटर के बाद बाटला हाउस एनकाउंटर देश भर में चर्चा का विषय बन गया। हर कोई जानना चाहता था कि आखिर वहां हुआ क्या है। आइए हम बताते हैं बाटला हाउस एनकाउंटर की पूरी कहानी।
1. बाटला हाउस एनकाउंटर की कहानी 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली के करोल बाग, कनाट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में हुए सीरियल बम ब्लास्ट से शुरू होती है। इन बम ब्लास्ट को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया था। इस ब्लास्ट के बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सूचना मिली थी कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकी बटला हाउस के एक मकान में मौजूद हैं।
2. 19 सितंबर, 2008 की सुबह आठ बजे इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की फोन कॉल स्पेशल सेल के लोधी कॉलोनी स्थित ऑफिस में मौजूद एसआई राहुल कुमार सिंह को मिली। उन्होंने राहुल को बताया कि आतिफ एल-18 में रह रहा है। उसे पकड़ने के लिए टीम लेकर वह बटला हाउस पहुंच जाए। राहुल सिंह अपने साथियों एसआई रविंद्र त्यागी, एसआई राकेश मलिक, हवलदार बलवंत, सतेंद्र विनोद गौतम आदि पुलिसकर्मियों को लेकर प्राइवेट गाड़ी में रवाना हो गए।
3. इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा अब्बासी चौक के नजदीक अपनी टीम से मिले। सभी पुलिस वाले सिविल कपड़ों में थे। उस वक्त पुलिस टीम को पूरी तरह नहीं पता था कि बटला हाउस में बिल्डिंग नंबर एल-18 में फ्लैट नंबर 108 में सीरियल बम ब्लास्ट के जिम्मेदार आतंकवादी रह रहे थे। वहां पहुंचने का मकसद फ्लैट में मौजूद लोगों को पकड़ पूछताछ के लिए ले जाने आई थी।
4. अब्बासी चौक से इंस्पेक्टर एमसी शर्मा बटला हाउस में बिल्डिंग नंबर एल-18 में फ्लैट नंबर 108 पहुंचे और सीढि़या चढ़ने लगे। पुलिस वालों ने ऊपर जाकर देखा कि सीढ़ियों के सामने इस फ्लैट में दो गेट हैं। उन्होंने बाईं ओर वाला दरवाजा अंदर की ओर धकेल दिया। उसके बाद पुलिस वाले अंदर घुस गए। उन्हें अंदर चार लड़के नजर आए। वह थे आतिफ अमीन, साजिद, आरिज और शहजाद पप्पू। सैफ नामक एक लड़का बाथरूम में था। इतने में दोनों ओर से धड़ाधड़ फायरिंग होने लगी।
5. कुछ देर में दोनों तरफ से फायरिंग खत्म होने के बाद पता चला कि इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को दो गोलियां लगी। हवलदार बलवंत के हाथ में गोली लगी। आरिज और शहजाद पप्पू दूसरे गेट से निकल कर भागने में कामयाब रहे। गोलियां लगने से आतिफ अमीन और साजिद की मौत हो गई। फायरिंग सुनकर लोग सीढ़ियों से नीचे भागने लगे। इसका फायदा उठाकर आरिज और शहजाद भी भाग गए।
6. एनकाउंटर के दौरान पुलिस ने दो आतंकियों को भागते समय गिरफ्तार कर लिया। ओवेस मलिक नामक एक शख्स ने 100 नंबर पर फोन करके पुलिस को फायरिंग की खबर दी। पीसीआर से जामिया नगर पुलिस चौकी को इस एनकाउंटर की खबर मिली। महज 10 मिनट के अंदर इस गोलीबारी की खबर इलाके में फैल गई और मौके पर भारी भीड़ जमा हो गई। पुलिस भी भारी तादाद में पहुंच गई और बाटला हाउस बिल्डिंग नंबर 18 को सील कर दिया गया।
7. होली फैमिली हॉस्पिटल में इलाज के दौरान इंस्पेक्टर शर्मा का निधन हो गया। इंस्पेक्टर शर्मा ने अपनी 21 साल की पुलिस की नौकरी में 60 आतंकियों को मार गिराया था। जबकि 200 से ज्यादा खतरनाक आतंकियों और अपराधियों को गिरफ्तार भी किया था लेकिन बटला हाउस का यह एनकाउंटर आखिरी साबित हुआ।
8. दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के नेतृत्व में विशेष टीम और जामिया नगर के बटला हाउस के एल-18 मकान में छिपे इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों में मुठभेड़ हुई। पुलिस ने दावा किया कि मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए। दो गिरफ्तार किए गए और एक फरार हो गया।
9. दिल्ली पुलिस ने जानकारी दी कि उसने इंडियन मुजाहिदुदीन के तीन कथित आतंकियों और बटला हाउस के एल-18 मकान की देखभाल करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार किया। दिल्ली में हुए विस्फोटों के आरोप में पुलिस ने कुल 14 लोग गिरफ्तार किए गए हैं, जो दिल्ली और यूपी के है। मानवाधिकार संगठनों ने एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए जांच की मांग की।
10. दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से पुलिस के दावों की जांच कर दो महीने में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। एनएचआरसी ने दिल्ली हाईकोर्ट के सामने अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने एनएचआरसी की रिपोर्ट स्वीकार करते हुए न्यायिक जांच से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई, लेकिन उसने भी इंकार कर दिया।