बीसीआई क चेयरमैन मनन मिश्रा ने कहा कि इस बात का जवाब देने के लिए नेताओं को एक हफ्ते का समय दिया गया है। इसकी सुनवाई 22 जनवरी को होगी। मिश्रा के मुताबिक नियम के हिसाब से सरकारी कर्मचारियों को वकालत करने की इजाजत नहीं है। बीसीआई के पास इस मुद्दे पर एक याचिका दायर की गई थी। इसके बाद ही बार काउंसिल ने नेताओं को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
गौरतलब है कि भाजपा के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और बीसीआई को पत्र लिख आग्रह किया था कि एमएलए और सांसदों को वकालत से रोका जाए। इस पत्र के जवाब में बीसीआई ने कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, सुब्रमनियन स्वामी, केटीएस तुलसी , अभिषेक मनु सिंघवी, मीनाक्षी लेखी, कल्याण बनर्जी को नोटिस भेजा है। अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में आरोप लगाया है कि चूंकि ये नेता एमएलए या एमपी होते हैं और इस पद होते हुई वकील के तौर पर उन मामलों का हिस्सा बनते हैं, जिसमें देश के वित्तीय हितों की बात होती है।
वहीं दूसरी ओर यह सच है कि कार्यकारी और न्यायपालिका के सदस्यों को वकालत करने की अनुमति नहीं है। वहीं ये नेता जो कि लेकिन निर्वाचित प्रतिनिधियों, जो कि सरकारी नौकर भी हैं, की अनुमति है। यह संविधान की भावना के खिलाफ था, इसने दावा किया था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में फैसला सुनाया था जिसमें कहा गया था कि बीसीआई और अधिवक्ता अधिनियम के नियमों के तहत किसी भी नेता को वकालत के पेशे से दूर नहीं रखा जा सकता ऐसे में वह कोर्ट में अपनी प्रैक्टिस कर सकते हैं।